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________________ लेखकका वक्तव्य इतिहासः पुरावृत्तः प्रमाणे रुपदर्शितः शिलालेखै स्ताम्रपत्रै वृद्धपुरुषैनिवेदितः ॥१॥ पट्टावलोभिराम्नातः राजकीयैरुदन्तिभिः किंवदन्तीभिरनुकूलैः प्रमाणित सुतकितैः ॥२॥ सएव सप्रमाणं स्यात् विद्वद्भिः परिकीर्तितम् . तदेवाहं प्रवक्ष्यामि लम्धकञ्चुक वृत्तमिह ॥३॥ पूर्व संक्षिप्तरूपेण मयैवात्र प्रकाशितम्। पञ्च सततिनवैकेऽस्मिन् संख्याकेहायने तथा ॥४॥ तस्यैव विस्तरं वक्ष्ये प्राप्तसामणिसंग्रहात् विद्वद्भिरातं भूया दित्याशास्महे वयम् ॥५॥ ___ श्रीलंबेच (लम्बकंचुक) जैन समाजका इतिहास वर्णन करते हैं इसलिये कि कोई विशिष्ट लोकविदित उत्तमपुरुषको लेकर वंशवर्णन किया जाता है जिससे समाज व जातिका
SR No.010527
Book TitleLavechu Digambar Jain Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZammanlal Jain
PublisherSohanlal Jain Calcutta
Publication Year1952
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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