SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 446
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४४४ * श्री लँबेचू समाजका इतिहास * ___अब इस इतिहासको यहाँ पूर्ण करते हैं। श्रीजिनसेन आचार्यके कहे हुए गृहस्थके ८ मूलगुणोंमें एक जलगालन मूलगुण और कहा उसका आशय यह है कि इसलोक और परलोकके लिये हितकर जलको छानके पीना चाहिये । इस जलमें अनेक प्रकारके त्रसजीव होते हैं और जलकायके हैं । उनका त्याग बनता नहीं, गृहस्थके त्रसकाय जीवोंकी रक्षा निमित्त और अपनी आरोग्थता निमित्त जल छानके पीना चाहिये । जलमें प्रत्यक्षमें चौमासोंमें लाल डोरा सरीखे बस हो जाते हैं और महीनोंमें भी त्रस पाये जाते हैं। वेलजियम कलकत्ता में एक दुर्वीनसे दिखाते हैं । पं० जुगुलकिशोरजी मुखत्यार तथा बाबू छोटेलालजी देखने गये सो बोले गोल चौकोर नाना प्रकार जन्तु जलमें देखे यह तो अबकी बात है। परन्तु जैनशास्त्रमें अनादिकालसे जलमें जीव बताये हैं और जलकी छाननेकी विधि बताई है और प्रसिद्ध भी यह है कि जग जाहिर हैं। रात्रिको नहीं खाते और जल छानके पीते वे जैनी हैं और इसके विषयमें अजैनऋषि भी लिखते हैं श्रीमान् मार्कडेयऋषि ।
SR No.010527
Book TitleLavechu Digambar Jain Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZammanlal Jain
PublisherSohanlal Jain Calcutta
Publication Year1952
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy