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________________ * श्री लँबेचू समाजका इतिहास * ४०५ की हुई दुकाने थी जो तीर्थ क्षेत्र जैनकमिटी ने बेची। जिसका सं० २२००० करीब जमा है। अभी सरकारसे रुपया मिला या नहीं मिला मालूम नहीं । हाकिम कहते रहे कि जैनधर्मशाला बना दो, धर्ममें दान की हुई जायदाद की रकम धर्ममें ही लगा दो ओर भुवनेश्वरका भी इतिहास बहुत हे, संक्षेपमें कहते हैं। यहाँका राजा शिवकोटि शैव थे, तब समन्तभद्र स्वामीसे नमस्कार करनेका जोर दिया तब उन्होंने रात्रिमें स्वयम्भू स्तोत्र रचकर पढ़कर नमस्कार करते ही पिण्डी फटकर चन्द्रप्रभं मूर्ति निकली उनके उपदेशसे राजा जैन होकर दिगम्बर मुनि हुए। बहुत तपश्चरण किया, उन्होंने भगवती आराधना सार ग्रन्थ बनाया। भुवनेश्वरमें अब भी पिण्डी फूटी हुई गीले कपड़ेसे ढकी रहती है। हम गये तब देखा है। इससे हम अनुमान करते हैं कि ये परवार परमार वंशके प्रतीहार राजकुलमें होगें समय परिवर्तनमें। किसका क्या होता है जगन्नाथपुरीका राजा भी इन्हीं भोसले वंसमें हो, पुरीके लोग कहते हैं कि पुरीका राजा क्षत्रिय था उसने एक ग्वालिन भोगपत्नी बना ली थी। राजा स्नानकर उठा तो
SR No.010527
Book TitleLavechu Digambar Jain Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZammanlal Jain
PublisherSohanlal Jain Calcutta
Publication Year1952
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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