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________________ ३६२ * श्री लँबेचू समाजका इतिहास * ही होते हैं पर साधारणके लिये एक डंडा पर टूल एकरंगाको उढ़ाकर उसपर लोटी रख दी। इसीको छता (छत्र ) कह दिया और वरात ( यान ) जब समधीके घर जीमनेको जाती है तब घरातके तरफसे रिस्तेदार ( सगेपरसंगी ) भाई बन्धु कतारबद्ध खड़े होकर बरातमें आये हुये बरातियोंसे जुहारू साहब ऐसे शब्दसे पंखा लेकर सबका विनय करते हैं और दरवाजे पर एक कंडीमें पानी भर कर एक परात रख दो पिडिया बेसन की छोटी रख पैर धोनेका पेरोसे बेसन उबटन की जगह लगाकर पैर धोनेका आग्रह करते हैं। खास समधीके पैर समधी धोते हैं। यह सब शिष्टाचार विनयका उल्लेख क्षत्रियोंके विवाहमें साहित्यमें देखा गया है। अजैन विद्वानोंने भी रामचन्द्र आदिके विवाहमें उल्लेख किये गये हैं। यह सब शिष्टाचार क्रमबद्ध उल्लेखनीय सदासे चला आता है। रोरी का तिलक और चावलसे माथा सुशोभित करना प्रत्येक विवाहमें विवाह के प्रत्येक कार्यम होते हैं। खेतलग्न जनमासे मेंही देते हैं। लग्नमें दो डालीमें एकमें चावल भरके दूसरेमैं बताशे भरके उसपर लग्न रख लनके साथ दो दोना
SR No.010527
Book TitleLavechu Digambar Jain Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZammanlal Jain
PublisherSohanlal Jain Calcutta
Publication Year1952
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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