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________________ * श्री लँबेचू समाजका इतिहास * ३८१ बहुत रहे हैं । जो महीवाले रावत कहलाते हैं और प्यारमपुरा जैतपुरसे चलके चम्मिल नदीके निकट जिन मंदिर है वहांके ( हस्तिक्रान्त) हतिकांति बस्ती है। ही मुन्नालाल द्वारकादास लमेचू पोद्दार गोत्रीय | जैन जो राजा भदोरिया के ( पोत) खजाने के परीक्षा करके हिसाब रखते जिससे पोद्दार अलल हुई (जिसको राजपुताने उदयपुरके इतिहास में ) । उसका इतिहास पेज ४२६ में राज्यके आय-व्ययका हिसाब रखनेवाले कार्यालयको (अक्षपटल) कहते हैं । अधिकारी राजपूत कर्मचारी पदाधिकारी (अक्षपटलाघीस ) कहते हैं ( पोहारके) माने अक्षपटलाधीशके हैं। प्राचीन लिपिमाला १५२ पृ० में देखो तो राजा भदावर के पोद्दार होने से इनका अलल गोत्र पोद्दार भया जिनका फार्म अब ७६ नं० बड़तल्ला स्ट्रीट कलकत्तामें गद्दी है । वाड़ी है उसके मालिक बाबू सोहनलाल हैं और कुरावली में भी लमेचूओंके घर है जहाँ तिहैप्या रावत चंदोरिया शंखा कुअर भर ये कुदरा गोत्रके हैं। आगरामें वरोलिया गोत्र के जिनकी वेलनगञ्ज में वंशीधर सुमेरचन्दकी तथा
SR No.010527
Book TitleLavechu Digambar Jain Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZammanlal Jain
PublisherSohanlal Jain Calcutta
Publication Year1952
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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