SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 379
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ --... . * श्री लँबेचू समाजका इतिहास * ३७७ उन्हींके वंशमें हैं। इटावामें भी हमारा मकान है कर्णपुरा (कन्नपुरा) बोला जाता है। जहाँ रोजा सुमेरसिंह (मुमेरशाहका किलाहै टिकटी)टकसीका मंदिर ह वहीं कनपुरा है। कन्नपुरामें १ जिन मन्दिर है पुराना और हमारे कुटुम्बी चंदोरियाक घर हैं तथा रबरौआ लोगोंके भी दो-तीन घर हैं और भिंडमें चोधरी लमेचुओंके घर चबूतराके पास तीन है तथा १२ परेटपर हैं और १ पान्नेके चोधरीक है और अटरवालोंके मकान हवेली पक्के मकान फार्म हैं । ___ लँमेचुओंके घर २५ हैं। और खरौवा गोलारारे गोलसिंगारे खंडेलाल परवार पद्मावती पुरवार अग्रवाल भिंड्या दशा आदि सब जैनियोंके ५०० पांच सौ घर तथा ८ जिन मन्दिर वर्तमानमें हैं। परवार खंडेलवाल पद्मावतीपुरवारोमें एक दो घर हैं। हमारा घर गुरहाई मुहल्ला में है, जो किला और परेटके मध्यमें पड़ता है । जहाँ पोस्ट आफिस है। अगारी पूर्व तरफ किला है। किलके पास १ जिन मन्दिर सबसे पुराना कोई सात-आठ सौ वर्षके करीबका हो, किलंका मन्दिर बोला जाता है। उसका प्रबन्ध गोलसिंगारे भाइयोंके हाथमें है। और दूसरा
SR No.010527
Book TitleLavechu Digambar Jain Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZammanlal Jain
PublisherSohanlal Jain Calcutta
Publication Year1952
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy