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________________ २६४ * श्री लँबेचू समाजका इतिहास * हम ऐसे सठ तो नाहीं। जो शत्रुओंकी खबर न राखें, परन्तु जानकर ही आपसो न कही यादवनके वंशमें तीन ३ पुरुष ऐसे जन्मे हैं। जिनकी देव सेवा करे हैं । उनको जीतने समर्थ देव और मनुष्य कोई नाही, प्रथम तो वाईस वे तोथङ्कर श्रीनेमिनाथ राजा समुद्र विजय रानी शिवदेवी के गर्भसे उपजे, जिनकी तीन लोक सेवा करै। फिर वसुदेवके रोहिणी रानीके उदरसे नवमें बलभद्र उपजे, और वमुदेवके ही दूसरी रानी देवकीके गर्भसे नवमें नारायण कृष्ण उपज हैं । ये तीन पुरुष महादुर्जय है जब श्रीनेमिनाथ गर्भमें आये, तब छ महीना पहिलेसे समुद्र विजयके घर रन वृष्टि हुई, पन्द्रह मास रत्न वर्ष तीन समय और जब जन्म भया तब, इन्द्रादिक देव सुमेरु पर ले जाय, जन्माभिषेक किया सो भगवान् त्रिलोकीनाथ तिनके माता-पिता सो कोई कैम जीते, और बलभद्र नारायणका सामर्थ्य, क्या आपके श्रवणमें नहीं आया जो शिशुपाल सरीखे योधा रणमें जीते और साढ़े तीन करोड़ योधा रणधीर एक राजा शरके वंशके हैं। और आप यह न जाने मेरे भयसे महा समुद्र में छिपकर रहे हैं। वे सबही बहुत बुद्धिमान न्यायभागी
SR No.010527
Book TitleLavechu Digambar Jain Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZammanlal Jain
PublisherSohanlal Jain Calcutta
Publication Year1952
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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