SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 291
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ * श्री लँबेचू समाजका इतिहास * २८५ राजा यह देखे कि इस समय शत्रु प्रबल है। हम सकेंगे नहीं कुछ दिन बाद सेनादिकोंका जोर बढ़ा लेंगे। तब युद्ध करेंगे। ऐमा विचार दूसरे स्थान सुरक्षित जगह पहुंच युद्धकी सामग्री जोड़नेके लिये जाना कुछ दिन कालयापन करना, दिन विताना ( यान ) है। (द्वैधीभाव ) शत्रुको दूसरेसे लड़ा देना, मित्र भेद करना, (आसन) अपने आसन पर दृढ रहना ( आश्रय) किमी प्रबल मित्र राजाका सहारा लेना ये षड्गुण कहै इनके पालन करने वाले सब यादवोंने एकमतो, एक मंत्र एक सलाह करके विचार किया, कई एक दिन हम तुम शूरवीर कृष्णको यहाँसे उठाय कर और जगह रखें, यह कृष्ण तीन खण्डका जीतनहारा योद्धा इस समय जरासिंधसे लड़ने समर्थ नाहीं, तिससे इस स्थानको तजकर हम तुम पश्चिम दिशाकी और निवास करें, सुरक्षित स्थान पकड़े कार्यकी सिद्धि निःसन्देह होय हम यह स्थानक तजें पश्चिम की ओर चले और जो वहाँ जरासिंध आवै तो रण विष नीकी पाहुणगति करै यह भी रणप्रिय है सो उसे रणविर्षे प्रसन्न करें यह (मंत्र) विचार कर अपने कटकमें सबोंको
SR No.010527
Book TitleLavechu Digambar Jain Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZammanlal Jain
PublisherSohanlal Jain Calcutta
Publication Year1952
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy