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________________ * श्री लँबेचू समाजका इतिहास * २७६ होते ऐसे स्वम १६ हुये माताको ॥ भगवान गर्भमें आये पूर्वसे ही रत्नोंकी वृष्टि हुई इसीसे भगवान् का नाम हिरण्य गर्भ भया। हिरण्य नाम सुवर्ण रत्नादि हैं गर्भमें जिनके अर्थात् गर्भ में आनेसे रत्नवर्षे इन बातोंकी परिचायक सूरीपुर में कई बातें हुई हैं एक तो एक साहब स्यात् उसका नाम ग्रीक हो हमको याद नहीं रहा जवाहरलालजी भट्ठारककी चिट्ठी जब ग्वालियरके भट्टारकके पास भेजी थी उस चिट्ठी में लिखा था कि यहां अमुक साहब सूरी पुरसे प्रतिमा लेने अजायब घरके लिये आया तो हमने रोक दिया प्रतिमा नहीं जाने दी हम प्रतिमायें वटेश्वरके लिये। जिन मन्दिर में उठा लाये जमुना किनारेमें तो उसने गजटियरमें लिखा है कि यहाँकी जनता कहती है कि यहां रत्नवृष्टि हुई थी दूसरी बात यह कि एक सांकल ६ मनकी एक मल्लाह को मिली वह मिट्टीसे ढकी थी उसको वाह पे किमी माथर वैश्यको लाहमें बेंच आया वह सांकल सोनेकी निकली इत्यादि जनश्रुति है तीसरे वटश्वर सूरीपुरके मकान टीलोपर जमुनाके तटमें ऐसे-ऐसे खड़े हैं कि जिनकी भित्तियोंका आसार चार-पाँच हाथ का पाया जाता है। खड़हर पड़े
SR No.010527
Book TitleLavechu Digambar Jain Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZammanlal Jain
PublisherSohanlal Jain Calcutta
Publication Year1952
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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