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________________ * श्री लँबेचू समाजका इतिहास * तर्हि लंबकंचुकुल गयण-भाणु परवइ- समज्ज सर हल्लणु पुरवड़ सब्बह पहाणु । नरनाह सहा- मंडण तहो अमयवाल तणुरुहव हूउ जणिट्ठ जिण सांसण- परिणइ पुण्ण- सिठु । वणि पट्ट किय-भालयल- रूउ | रायहंसु १६५ सो अभयवाल णरणाह-रज्जे सुपहाणु जिण भवण करायउ तं ससेउ महमंत धविय चउहाण वंसु । राय वावार कज्जे । केयावलि झंपिय-तरणि तेउ । चली गई। रात्रि बीतने पर संयम रूपी लक्ष्मी से विशुद्ध कवि लक्ष्मण जागे । जिनदेव की वंदना और धर्म रत्न का अर्जन कर के, शिथिल नयन होकर, मन में ध्यान करने लगे । रात्रि में जो वृत्तान्त हुआ था, उसकी बार-बार भावना करने लगे- 'अंबादेवी ने जो पवित्र बात कही है वह कदापि असत्य व शून्य नहीं हो सकती, वह मेरी चित्त की आशा को पूरी करनेवाली पुण्य बात है ।'
SR No.010527
Book TitleLavechu Digambar Jain Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZammanlal Jain
PublisherSohanlal Jain Calcutta
Publication Year1952
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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