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________________ S समाजका इतिहास १६६ श्रावकधर्म जैनधर्म पालनवाले रहते उस नलकच्छपुरमें हम रहते थे। और केवल लड़ाई करानेमें ही चतुर हो उसे ( विग्रहराज ) दुर्लभ वीसलदेव कहते हैं। राजाओंके यहाँ सब कामोके विभाग होते हैं और वे काम ( कार्य) पृथक् पृषक मनुष्य ( क्षत्रियों ) में बँटे रहते हैं। जैसे देखो राजपूताने-४२६ पेजमें टिप्पणमें नीचे : (१) मन्दिर आदि धम्मस्थानोंको बनवानेमें चन्दे आदिसे सहायता देनेवालोंको गोष्ठि या गोष्ठिक कहते हैं जैसे ऊपर हम प्रतिमा लेख १४६८ का दिखाया उसमें (गुर्जर गोष्ठि ) आया उसका अर्थ गुजरात देशके धर्मस्थान धर्मकार्य करने में सहायक पुरुष समुदाय धर्शकामकी सभा कमेटोके मनुष्य ये भी क्षत्रिय होते थे। (२) जिस राज कर्मचारी या मंत्रीके अधिकारमें अन्य राज्योंसे संधि या युद्ध करनेका कार्य रहता था उसको (सांधि विग्रहिक) कहते थे, राजपूताने पेज ४२७ (३) राज्यके आप व्ययका हिसाब रखनेवाले कार्यालय (मेहक्मा) को अक्षपटल कहते थे और उसका अधिकारी अक्षपटलिक या ( अक्षपटलाधीश ) कहलाता
SR No.010527
Book TitleLavechu Digambar Jain Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZammanlal Jain
PublisherSohanlal Jain Calcutta
Publication Year1952
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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