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________________ सुरस पक्व मनोहर पावने, विविध लं फल पूज रचावने । त्रिजगनाथ कृपा अब कीजिए, हमहि मोक्ष महाफल दीजिए । ॐ ह्रीं श्रीवृषभदेव जिनेन्द्राय मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्व० जल - फलादि समस्त मिलायकें, जजत हों पद मंगल गायके । भगत-वत्सल दीन दयालजी, करहु मोहि सूखी लखि हालजी ॥ ॐ ह्रीं श्रीवृषभदेव जिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्ध निवं ० ३ पञ्चकल्याणक द्र ुतविलम्बित तथा सुन्दरी असित दोज अषाढ़ सुहावनी, गरभ-मंगल को दिन पावनी । हरि-सची पितु-मातहि सेवही, जजत हैं हम श्रीजिनदेव ही ॥ ॐ ह्रीं आषाढ़ कृष्ण द्वितीयादिने गर्भमङ्गलप्राप्ताय श्रीवृषभजिनदेवाय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।
SR No.010526
Book TitleJinendra Poojan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhash Jain
PublisherRaghuveersinh Jain Dharmarth Trust New Delhi
Publication Year1981
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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