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________________ कनक-वरण तन तुङ्ग धनुष पन-शत तनो, कृपा-सिंधु इत आइ तिष्ठ मम दुख हनो। ॐ ह्रीं श्रीआदिनाथजिनेंद्र ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् । ॐ ह्रीं श्रीआदिनाथजिनेंद्र ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः। ॐ ह्रीं श्रीआदिनाथ जिनेंद्र ! अब मम सन्निहितो भव भव वपट् अष्टक द्रुतविलंबित तथा सुन्दरी हिमवनोद्भव-वारि सुधारिक, जजत हों गुन-बोध उचारिकें । परम-भाव सुखोदधि दीजिए, जनम मृत्यु जरा छय कीजिए । ॐ ह्रीं श्रीवृपभदेवजिनेंद्राय जन्ममृत्युविनाशनाय जलं निर्व० मलय-चन्दन दाह-निकंदनं, घसि उभे करमें करि वंदनं । जजत हों प्रशमाश्रम दीजिए, तपत ताप विधा छय कीजिए । ॐ ह्रीं श्रीवृपभदेवजिनेन्द्राय भवतापविनाशनाय चन्दनं निवं. अमल तंदुल खण्ड-विजित, __सित निशेश-हिमामिय-तजितं । जजत हों तसु पुंज धरायजी,
SR No.010526
Book TitleJinendra Poojan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhash Jain
PublisherRaghuveersinh Jain Dharmarth Trust New Delhi
Publication Year1981
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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