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________________ ८८ तमखंडन दीप जगाय, धारों तुम आगे । सब तिमिरमोह क्षयजाय, ज्ञान-कला जागे ॥चौवीसों० ॐ ह्रीं श्रीवृषभादिवीरांतेभ्यो मोहांधकारविनाशनाय दीपं निव० दशगंध हुताशनमांहि, हे प्रभु खेवत हों । मिस धूम करम जरिजाहिं, तुम पद सेवत हों॥चौवीसों ॐ ह्रीं श्रीवृषभादिवीरांतेभ्योऽप्ठकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति. शुचि पक्व सुरसफल सार, सब ऋतुके ल्यायो। देखत दृगमनको प्यार, पूजत सुख पायो । चौवीसों. ॐ ह्रीं श्री वृषभादिवीरांतेभ्यो मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्व० जलफल आठों शुचिसार, ताको अर्घ करों। तुम को अरपों भवतार, भवतरि मोक्ष वरों ॥चौवीसों। ॐ ह्रीं श्रीवृषभादिवीरांतेभ्यो अनर्घ्यपदप्राप्तये अयं निव० जयमाला दोहा श्रीमत तीरथनाथ-पद, माथ नाय हित हेत । गाऊँ गुणमाला अब, अजर अमरपद देत ॥१॥ धत्ता जय भवतमभंजन जनमनकंजन, रंजन दिनमनि स्वच्छ करा ।
SR No.010526
Book TitleJinendra Poojan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhash Jain
PublisherRaghuveersinh Jain Dharmarth Trust New Delhi
Publication Year1981
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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