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________________ ८४ सत्सम्यक्त्व - विबोध-वीर्यं विशदाव्याबाधताद्यैर्गुणं, युक्तांस्तानिह तोप्टवीमि सततं सिद्धान् विशुद्धोदयान् ॥ १३ (पुप्पाञ्जलि क्षिपामि) जयमाला विराग सनातन शान्त निरंश, सुधाम विबोध-विधान विमोह, प्रसीद विशुद्ध सुसिद्ध समूह | विदूरित संमृति भाव निरङ्ग, समामृतपूरित देव विसङ्ग । अबन्ध कषाय विहीन विमोह, प्रसीद विशुद्ध सुसिद्ध- समूह | निवारित दुष्कृत कर्म विपाश, - निरामय निर्भय निर्मल हस । · - B · · सदामल - केवल - केलि निवास । भवोदधि- पारग शान्त विमोह, - प्रसीद विशुद्ध सुसिद्ध-समूह | - अनन्त - सुखामृत सागर धीर, कलङ्क - रजो - मल-भूरि-समीर । विखण्डित काम विराम विमोह, प्रसीद विशुद्ध सुसिद्ध समूह |
SR No.010526
Book TitleJinendra Poojan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhash Jain
PublisherRaghuveersinh Jain Dharmarth Trust New Delhi
Publication Year1981
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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