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________________ ७० बीस तीर्थकर पूजा [ कविवर द्यानतरायजी ] दीप अढाई मेरु पन सब तीर्थंकर बीस । तिन सबकी पूजा करूँ मन वच तन धरि सीस ||१|| ॐ ह्रीं विद्यमानविंशतितीर्थङ्कराः अत्र अवतर अवतर संवौपद् । ॐ ह्रीं विद्यमानविंशतितीर्थङ्कराः ! अत्र तिष्ठत तिष्ठत ठः ठः । ॐ ह्रीं विद्यमानविंशतितीर्थङ्कराः ! अत्र मम सन्निहिता भव भव वपट् । इन्द्र फणीन्द्र-नरेन्द्र वंद्य पद निर्मल धारी । शोभनीक संसार सार गुण हैं अविकारी ॥ क्षीरोदधि सम नीरसों (हो) पूजों तृपा निवार । सीमंधर जिन आदि दे वीस विदेह मंझार ॥ तारणतरण जहाज ||१|| ॐ ह्रीं सीमंधर- युगमन्धर - बाहु- मुबाहु -संजात स्वयंप्रभ-वृपभानन - अनन्तवीर्य-सुरप्रभ - विशालकीर्ति - वज्रधर - चन्द्राननभद्रबाहु भुजङ्गम-ईश्वर-नेमिप्रभ - वीरपेण- महाभद्र - देवयशोऽ जितवीर्याश्चेतिविंशति विद्यमानतीर्थङ्करेभ्यो जन्मजरामृत्यु श्रीजिनराज हो भव विनाशनाय जलं निवं० । तीन लोक के जीव पाप आताप सताये । तिनकों साता दाता शीतल वचन सुहाये | बावन चंदन सों जजूं (हो) भ्रमन तपन निरवार || सीमं ० ॥ -
SR No.010526
Book TitleJinendra Poojan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhash Jain
PublisherRaghuveersinh Jain Dharmarth Trust New Delhi
Publication Year1981
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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