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________________ लोकान्त विराजे क्षण में जा। निज लोक हमारा वासा हो, शोकांत बनें फिर हमको क्या ॥११॥ जागे मम दुर्लभ बोधि प्रभो ! दुर्नयतम सत्वर टल जावे । बस ज्ञाता-दृष्टा रह जाऊँ, मद-मत्सर मोह-विनश जावे ॥१२॥ चिर रक्षक धर्म हमारा हो, हो धर्म हमारा चिर साथी । जग में न हमारा कोई था, हम भी न रहें जग के साथी ॥१३॥ चरणों में आया हूं प्रभुवर, शीतलता मुझको मिल जावे । मुरझाई ज्ञान लता मेरी, निज अन्तरबल से खिल जावे ॥१४॥ सोचा करता हूं भोगों से, बुझ जावेगी इच्छा ज्वाला । परिणाम निकलता है लेकिन, मानों पावक में घी डाला ॥१५॥ तेरे चरणों की पूजा से, इन्द्रिय सुख की ही अभिलाषा ।
SR No.010526
Book TitleJinendra Poojan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhash Jain
PublisherRaghuveersinh Jain Dharmarth Trust New Delhi
Publication Year1981
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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