SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 161
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अब शरण आयो दोऊ कर जोर नावत भाल मैं ॥४॥ कर प्रमाण के मानतें, गगन नपों किस भंत । त्यों तुम गुणवरनन करें, कहूँ न पावे अंत ।। विसर्जन संपूर्णविधि करि वीनऊँ इस परम पूजन ठाठ में। अज्ञानवश शास्त्रोक्त विधितै चूक कीनी पाठ में ।। सो होउ पूर्ण समस्त विधिवत् तुम चरण की शरणतं । वंदूं तुम्हें कर जोड़ के उद्धार जम्मन मरणते ।।१।। आह्वानन स्थापन सन्निधीकरण विधानजी । पूजन विसर्जन हू यथा विधि जानों नहीं गुण खानजी।। जो दोष लागे सो नशो सव तुम चरण की शरण में । बंदू तुम्हें कर जोड़ के उद्धार जम्मन मरणनै ।।२।। तुम रहित आवागमन आह्वानन कियो निज भाव में। यथा विधि निज शक्ति सम पूजन कियो अति चाव तं ।। करहूं विसर्जन भाव ही में तुम चरण की शरण न । वंदू तुम्हें कर जोड़ के उद्धार जम्मन मरण ने ॥३॥ तीन भुवन निहुँ काल में तुममा देव न और। सुख कारन संकट हरण नमूं जुगल कर जोर ।। शान्ति-पाठ (संस्कृत) शान्तिजिनं शशि-निर्मल-वक्त्रं शील-गुण-वन-मंयम-पात्रम् । अप्टशताचित-लक्षण-गावं नौमि जिनोत्तममम्वुज-नेत्रम् ||१ पञ्चमभीप्सित-चक्रधराणां पूजितमिन्द्र-नन्द्र-गणंश्च ।
SR No.010526
Book TitleJinendra Poojan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhash Jain
PublisherRaghuveersinh Jain Dharmarth Trust New Delhi
Publication Year1981
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy