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________________ १२६ हरिगीतिका छंद शुचि सित सलिल की धार, शशि रस तुल्य गुण की खान है। सो चरण सन्मुख ईश के, भवसिंधु-सेतु समान है। वसुकर्मजेता मोक्षनेता, मदनतन अभिराम है। भगवान बाहुबलीश को, नित शीशनाय प्रणाम हैं। ॐ ह्रीं भगवते श्रीबाहुबलिजिनाय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा। केशर कपूर सुगन्धयुत श्रीखण्ड संग घसाइये । भवतापभंजन देव पद की भव्य पूज रचाइये ॥वसुकम०।। ॐ ह्रीं भगवते श्रीवाहुबलिजिनाय संसारतापविनाशनाय चंदन निर्वपामीति स्वाहा। अक्षत अखंड सुधांशुकरसम धवल शुद्ध चुनायके । अक्षय महापद हेतु चरचूं चरण नित गुण गायके ॥वमुकर्म०॥ ॐ ह्रीं भगवते श्रीबाहुबलिजिनाय अक्षयपदप्राप्तयं अक्षतान् निर्वपामोति स्वाहा। अम्भोज चंपक मालती बेला गुलाव प्रसून ले । पदपद्म पूंजू देवके, हैं मदन मद जिनने दले ॥वमुकर्मः।। ॐ ह्रीं भगवते श्रीबाहुबलिजिनाय कामवाणविध्वंमनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा। अतिमिष्ट मोहन भोग मोदक घेवरादिक घृतमने । पकवान से भगवान को पूंजूं क्षुधादिक जिन हने ॥वमुकम०॥ ॐ ह्रीं भगवते श्रीवाहुबलिजिनाय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निवपामीति स्वाहा।
SR No.010526
Book TitleJinendra Poojan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhash Jain
PublisherRaghuveersinh Jain Dharmarth Trust New Delhi
Publication Year1981
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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