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________________ पुष्पमाला है माता हमारी, मैं हूं उसका कैसे प्रतीतूं बात तुम्हारी, आश्चर्य है अद्भुत चन्द्रयश यदि सम्मुख आवे, प्रेम करन की राय । तव तुम वैर तजो महाराजा, सुनो सीख सुखदाय नत हो माना वचन सती का, सतीजी चली सताव | सुदर्शन पुर द्वारपाल को, पिछला कहा वनाव खबर पाय के चन्द्रयश जी, आये जननी शोकातुर हो अश्रु वहाते, बोले सती से खास धन्य-धन्य है भाग्य हमारा, माता दर्शन दावानल पर मेघ वृष्टि सम, कृपा करी तुम संयमवेष किस कारण लीना, कैसे काल गर्भ कहां पै रखा माताजी, मुझ को दो कही सती ने कथा पाछली, जो तुम पुर पर आय । विग्रह करता रोष को धरता, वह है मेरा जाय रे । स । २६५ । आय पूत । मन पछताते नमिराय जी, क्षमा याचते मैं अपराधी भाई तुम्हारा, मदमाता रे । स । २५६ । समझाय रे |स | २६० । पास । रे । स । २६१ | पाय । रे । स । २६२ । रे । स । २६३ । विताय । रे । स । २६४ | रे । स । २६६ । रे । स । २६७ | सुन कर हरषा चन्द्रयशजी, भाई-मिलन को धाय । नमिराय को खवर पड़ी तब, चलके सामने आय दोनों मिल गये भाई पियारे, आनन्द अंग न माय । जय जयकार सभी जन वोले, पड़े सती के पाय दिया वोध सती ने हितकारी, सुनो सुनो तुम अज्ञानवश तुम भान भूलते, दोनों महा दुखपाय एक हाथी के कारण देखो, निज को वैठे पूज्यनीक पर धावो करतां, तुच्छ को करता तूल मन को वश नहीं करने से नृप, जीव भमै भव मांय । पूज्य गुणों का घातक बन कर भव भव में दुख पाय रे |स | २७० | रे |स | २६६ | राय । रे । स । २६८ । भूल । भूर । भरपूर रे । स । २७१ । चन्द्रयशजी प्रेम-भाव से, गद्गद् कंठ लगाय । माताजी मेरे सुख के दाता, वैर विरोध भगाय रे । स । २७२ । संयमश्री मेरे मन बसगई, माताजी परताप । सुदर्शन पुर राज-पाट को, तज के मिटाऊं ताप रे | स | २७३ ।
SR No.010525
Book TitleJawahar Vidyapith Bhinasar Swarna Jayanti Smarika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiranchand Nahta, Uday Nagori, Jankinarayan Shrimali
PublisherSwarna Jayanti Samaroha Samiti Bhinasar
Publication Year1994
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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