SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 89
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ एकाकी जब देखा पुरुष को, बोली धीरज धार। वान्धव! तुमने करी सहायता, मुझ पर है उपकार रे।स।१४० । भाई भाई तुम किसको कहती, मैं हूं मणिप्रभ राय। रलवहा नगरी का स्वामी, होओ तुम सुखदाय रे ।स।१४१ । मुझे मानने से तुम प्यारी, भय होवे सब दूर । अपूर्व अवसर आज मिला यह, भोगो सुख भरपूर रे ।स ।१४२ । भाई भाव तुम मुझ पर रखो, तथा पुत्री लो जान । प्राणदान के दाता मेरे, विनती करूं सुजान रेस १४३ । वैताढ्यगिरि की दो श्रेणी का, मैं स्वामी सुखकार । भाग्ययोग से तुझे मिला हूँ, पटरानी पदधार रे ।स।१४४ । सती सोचे मणिरथ से छूटी, जंगल भागी आय । दुख दावानल से तो छुटी, पड़ी कूप के मांय रे।स। १४५ । मृगी समान मैं हुई अभागिन, दुःख पारधी लार | ज्यों भागू त्यों आगे आता, कठिन कर्म निरधार रेस ११४६ । दूजा गणिप्रभ प्रगट हुआ है, रे मन धीरज धार । पति प्राण पहले ने लीना, दूजा मम संहार रे ।स।१४७ । प्राण जाय पर शील न जावे, यह सच्चा निरधार। भौतिक तन यह नाशवान है, शील सदा सुखकार रे ।।१४८ । धन तन लाज को देते गुणीजन, एक प्राण के काज । प्राण त्याग कर रखे धर्म को, यह सद्या है काज रेस ११४६ । नाशवान से अविनाशी का, बदला करना आज । अपूर्व अवसर मिला आज यह, सिद्ध करूं निज काजास १५० । कर विवेक बोली गणिप्रभ से, कहां जाते थे राय!। किस कारण से पीछे फिरते, कहो मुझे समझाय है। 1971 'मणिचूड़' हैं पिता हमारे, लीना संजग भार। वन्दन करने को मैं जाता, मिल गई तुन गुणधार दे। १५:२॥ महल में रखकर तुमको पारी, दर्शन का निमार। चार ज्ञान के ये हैं धारक, सुविहित गुमा के. पारम ::: सुना नाम जद मुनि का मुख से, चित्त में न मुनि-पुत्र तुम हो महारापा, मुनी हमारे ::
SR No.010525
Book TitleJawahar Vidyapith Bhinasar Swarna Jayanti Smarika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiranchand Nahta, Uday Nagori, Jankinarayan Shrimali
PublisherSwarna Jayanti Samaroha Samiti Bhinasar
Publication Year1994
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy