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________________ राजतख्ते गर्व नहीं आवे, मेरी प्रजा दुःख नहीं पाये ।।१०।। स्तुति सुनके नहीं हरषाऊं, निंदा सुन के गुण मैं पाऊं।।११।। जुल्म किसी पर नहीं गुजारूं, हृदय की कुवासना में मारूं ।।१२।। दुःखी दुःख को हृदय विचारूं, दूर करने की इच्छा धारूं ।।१३।। राजकोष प्रजा हित खोलूं, सब के सुख में सुख तोलूं ।।१४।। भाई रक्षक वनकर रेवू, या के सुख में चित नित देॐ।।१५।। प्रभु से विनवू वेकर जोड़ी, पूरो ये सब मन की कोड़ी।।१६।। तर्ज पहलेवाली राय रजा ले आये महल में, सती आदर दे वोली ! आज भाग्य की हुई परीक्षा, सत्य वात मैं तोली रे ।स १७६ । जेठ बात नहीं कही सती ने, मन में किया विचार | अनरथ होगा द्वेष वढ़ेगा, समता में है सार रे |स ।८०। केसरी केसर विषधर मणि ज्यों, लगे न किसी के हाथ । गौरव इसमें है स्वामी का, नहीं गर्व का साथ रे ।स।८१ । दूर नहीं अब रहूं नाथ से, निश्चय लीना धार | पति-सेवा और गर्भ पालना, सुख का यह व्यवहार रे ।स।८२ । वसंतऋतु आई सुखदाई, पशु-पक्षी हरपाये । युगवाहुजी उपवन जाने, निज अन्तेउर आवे रे ।स ।८३ । मैं इच्छा की दासी प्रभुजी! रहूं आपके संग। चल आये दंपति कानन में, रंगे प्रेम के रंग रेस |८४ । सायंकाल को सव जन जाते, अपने अपने धान । मणिरध भी निज महल में आये, मन में सुमरे काम रे ।स १८ } युगवाहु का मन अति रंजा, वनक्रीड़ा सुखदाय | सुखकारी निवारर यहां का, गर्भवती सुख पाय रेस।८६। सब विधि की वहां की तैयारी, निशि निवास सुलतार । गयणरेहा निज पतिसंग रहकर, धरा धर्म पर धार देना नाना विधि की धर्म-भावना, धर्म-कदा का सार! प्रीतम संग इस विधि से करती, होरे बेड़ा पार देम १८८!
SR No.010525
Book TitleJawahar Vidyapith Bhinasar Swarna Jayanti Smarika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiranchand Nahta, Uday Nagori, Jankinarayan Shrimali
PublisherSwarna Jayanti Samaroha Samiti Bhinasar
Publication Year1994
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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