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________________ जानी चाहिए। पुरुषों का क्षेत्र स्त्रियों के पहुंच जाने से कोई अपवित्र नहीं हो जाएगा और न वे किसी कार्य के लिए सर्वथा अनुपयुक्त ही हैं क्योंकि पुरुष-समाज अब तक स्त्रियों को दासता में रखने का अभ्यस्त था, इसलिए उन्हें शिक्षा से पूर्ण रूप से वंचित रखा गया। इसी दासता को और मजबूत बनाए रखने के लिए बहुत प्रयल किए गए थे। उनकी शारीरिक और मानसिक शक्तियों की कमजोरी का तर्क दिया जाता रहा। इन सब के परिणामस्वरूप स्त्री की परवशता बढ़ती गई और जैसे-जैसे स्त्री परतन्त्र होती गई, पुरुष को स्वामित्व के अधिकार भी ज्यादा मिलते गए। सामाजिक और राजनैतिक क्षेत्र में उसका प्रभुत्व बढ़ता गया। परिस्थिति ऐसी हो गई कि पुरुष, स्त्री को चाहे कितनी ही निर्दयता से मारे, पीटे या घर से निकाल दे पर स्त्री चूं तक नहीं कर सकती। अगर प्रारम्भ से स्त्रियों को अपने जीवन निर्वाह करने योग्य शिक्षा दी जाती तो समाज की बहुत-सी अबलाओं और विधवाओं के नैतिक पतन के एक मुख्य कारण का लोप हो जाता। ____ आज स्त्रियों में जागृति की भावना बढ़ती जा रही है। वह खुले रूप से राजनैतिक, सामाजिक या धार्मिक क्षेत्र में पुरुषों से मुकाबला करने के लिए तैयार है। युनीवर्सिटियों में लड़कियां बड़ी से बड़ी डिग्रियां प्राप्त करने में तल्लीन हैं। पर हमारा देश अभी पतन के गहरे गड्ढे में गिर रहा है या उन्नति की ओर अग्रसर है ? इस प्रश्न का उत्तर देना जितना सरल है, उसे ज्यादा कठिन । किसी देश की उन्नति की कोई निश्चित सीमा रेखा अभी तक किसी के द्वारा निर्धारित नहीं की गई है। प्रत्येक देश की सभ्यता और संस्कृति की भिन्नता के साथ-साथ लोगों की मनोवृत्तियों और विचारधाराओं में भी विभिन्नता आ जाती है। उन्नति की एक परिभाषा एक देश में बहुत उपयुक्त हो सकती है और वही दूसरे देश में उसके ही विपरीत हो सकती है। सभी के दृष्टिकोण भिन्न-भिन्न हो सकते हैं। कुछ समय पहले भारत में शिक्षित स्त्रियां बहुत कम थीं, पर अब तो उनकी संख्या उत्तरोत्तर बढ़ती जा रही है। अपने अधिकारों और स्वतन्त्रता की मांगों की प्रतिध्वनि भी स्पष्ट रूप से सुनाई देने लगी है। पर मुख्य प्रश्न है कि क्या यह वर्तमान शिक्षा प्रणाली भारतीयों के सुख सन्तोष व समृद्धि को बढ़ा सकेगी? क्या केवल शिक्षिता होने से पति-पली के सम्बन्ध अच्छे रहकर गृहस्थ-जीवन स्वर्ग बन सकेगा? अगर नहीं तो शिक्षित स्त्रियां क्या करेंगी और उनका भविष्य क्या होगा। ६ वर्तमान शिक्षा का बुरा प्रभाव शिक्षा के अभाव में बहुत समय तक हमारे स्त्री-समाज की हालत बहुत दयनीय, परतन्त्र और दासतापूर्ण रही। उनकी अज्ञानता के कारण बहुत-सी बुराइयां उत्पन्न हो गईं। फलतः स्त्रीशिक्षा को प्रधानता दी जाने लगी। अशिक्षा को ही सब बुराइयों का मुख्य कारण समझकर उसे ही दूर करने पर बहुत जोर दिया जाने लगा पर अब धीरे-धीरे शिक्षित स्त्रियों की संख्या बढ़ती जा रही है। अब तक यह आशा की जाती थी कि पढ़-लिख कर स्त्रियां सफल एवं चतुर गृहिणी बनेंगी। वे आदर्श पली होकर पतिव्रत धर्म का आदर्श विश्व के समक्ष रखेंगी। वीर गुणवान संतान उत्पन्न कर राष्ट्र का भला करेंगी। शिक्षा की ओर महिलाओं की रुचि देखकर हम शकुन्तला, सीता के स्वप्न देखने लगे। हम सोचते थे कि बहुत समय पश्चात् अब भारतवर्ष में फिर लव, कुश, भरत और हनुमान जैसे तेजस्वी, शक्तिवान् और गुणवान् पुत्र उत्पन्न होने लगेंगे। हमें पूर्ण विश्वास था कि महावीर, बुद्ध, गौतम सरीखे महापुरुष उत्पन्न होंगे और भारत की कीर्तिपताका एक बार फिर विश्व में लहराने लगेगी। ऐसी ही मनोहर आशाओं और आकांक्षाओं के साथ-साथ अविद्यारूपी अन्धकार को दूर करने के लिए ज्ञान-सूर्य का उदय हुआ। पर ३६
SR No.010525
Book TitleJawahar Vidyapith Bhinasar Swarna Jayanti Smarika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiranchand Nahta, Uday Nagori, Jankinarayan Shrimali
PublisherSwarna Jayanti Samaroha Samiti Bhinasar
Publication Year1994
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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