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________________ FT कि - . म गुलामों सरीखा व्यवहार उनके साथ किया गया। दहेज प्रथा द्वारा उनका क्रय और विक्रय तय करने में बालिकाओं के माता-पिता को लज्जा का अनुभव नहीं होता था। कई शताब्दियों तक स्त्रियों के ऐसी अवस्था में रहते हुए यही कहा जाने लगा है कि स्त्रियां स्वभावतः शारीरिक दृष्टि से कमजोर होती हैं। उन्हें स्वतन्त्रता स्वतः पसन्द नहीं, घर के सिवा वाहर जाना भी नहीं चाहती तथा पुरुषों की गुलामी ही में जीवन की सफलता समझती हैं। लेकिन यह वात पूर्ण रूप से असत्य है। अशिक्षा एवं अज्ञानता के कारण वह पृथक् रूप से अपना जीवन ही निर्वाह नहीं कर सकती, अतः उन्हें पति के आधीन रहना पड़ता है ता है तथा दूसरे की गुलामी करनी पड़ती है, पर इसका यह तात्पर्य नहीं कि स्त्रियां गुलामी ही पसन्द करती हैं तथा स्वतन्त्रता उन्हें पसन्द नहीं है। आजीविका की सबसे बड़ी समस्या उन्हें सदैव दुखी बनाए रहती है। उन्हें ऐसी शिक्षा प्रारम्भ से नहीं दी जाती. जिससे वे अपने जीवन का निर्वाह स्वतन्त्र रूप से कर सकें। अगर वे इस योग्य हों कि स्वतन्त्रतापूर्वक अपना और अपनी सन्तानों का पालन-पोषण कर सकें तो उनकी हालत में बहुत कुछ सुधार हो सकता है। वे पति की दासी मात्र न रहकर पवित्र प्रेम की अधिकारिणी हो सकती हैं। उनका हृदय स्वभावतः कोमल होता है, उसमें प्रेम रहता है और आत्मसमर्पण की भावना पूर्ण रूप से विद्यमान होती है। पूर्ण रूप से शिक्षा प्राप्त करने पर भी वे प्रेममय दाम्पत्य जीवन व्यतीत कर सकती हैं। शिक्षा के अभाव में स्त्री के लिए विवाह एक आजीविका का साधन मात्र रह गया है। अभी हिन्दू समाज में कई ऐसे पति हैं जो बहुत क्रूर एवं निर्दय हैं और अपनी स्त्रियों को दिन रात पाशविकता से मारते-पीटते रहते हैं तथा कई ऐसी साध्वी देवियां हैं, जिन्हें अपने शरावी और जुआरी पति को देवता से बढ़कर मानते हुए पूजना पड़ता है और वे लाचारी से अपने बन्धनों को नहीं तोड़ सकती। अशिक्षा के कारण आजीविका के साधनों का अभाव ही उनकी ऐसी गुलामी का कारण है। समाज में यह भावना कूट-कूट कर भरी हुई है कि स्त्रियों का स्थान घर के भीतर ही है, वाहर नहीं और इन्हीं विचारों की पुष्टि के लिए यह कहना पड़ता है कि स्त्रियां घर से बाहर कार्यक्षेत्र के लिए विल्कुल उपयुक्त नहीं। कुछ समय के लिए उन्हें शारीरिक दृष्टि से अयोग्य मान भी लिया जाय तो भी इस विज्ञान के युग में गरितष्क की शक्ति के सामने शारीरिक शक्ति कोई महत्त्व नहीं रखती। सभी महत्वपूर्ण कार्य मस्तिष्क से ही किये जाते हैं। मानसिक दष्टि से तो कम से कम स्त्री और परुप की शक्ति में कोई भेद नहीं किया जा सकता। अभी तक शिक्षा के क्षेत्र में स्त्रियां पुरुषों के समान कार्य नहीं कर सकीं। वह तो उनकी लाचारी थी। उन्हें पूर्ण रूप से अशिक्षित रखकर क्या समाज आशाएं रख सकता था कि वे अपनी शक्तियों का उचित उपयोग कर सकें ? ___अगर अच्छी तरह से विचार किया जाय तो यह भी स्पष्ट हो जायेगा कि स्त्री और पुरुष की शारीरिक शाक्त में कोई विशेप भेद नहीं है। कुछ तो स्त्रियों का रहन-सहन ही सदियों से वैसा चला आ रहा है तथा खान-पान और वातावरण से उनमें कमजोरी आ जाती है. जो कि पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है। स्त्री और पुत्प का शरार रचना में कुछ भेद है पर उसका यह तात्पर्य नहीं कि स्त्री का किसी क्षेत्र से बहिष्कार ही किया जाय। पाई एसा नियां हैं और धीं जो प्रत्येक क्षेत्र में पुरुपों के समान ही सफल कार्यकर्ती साबित हुई। शिक्षा के क्षेत्र में वाला, धार्मिक क्षेत्र में चन्दनवाला द्रौपदी. मगावती आदि सतियां थीं. जिनका पत्पार्थ अनेक पुरुषों से भी पहा-चढ़ा था। भारतवर्ष प्रारम्भ से ही अध्यात्मप्रधान देश रहा, और विशेप कर स्त्रियां तो स्वभावतः धार्मिक-हदय हता है। अतः उसी क्षेत्र में वे पुरुषों के समान महत्त्वपूर्ण स्थान लेती रहीं यद्यपि राजनीतिक क्षेत्र में भी आजकल महिलाएं बराबर भाग लेती हैं। रानी लक्ष्मीबाई, अहिल्याबाई, दुर्गावती, चांदबीबी, नूरजहां आदि का स्थान बहुता . . em ' - -
SR No.010525
Book TitleJawahar Vidyapith Bhinasar Swarna Jayanti Smarika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiranchand Nahta, Uday Nagori, Jankinarayan Shrimali
PublisherSwarna Jayanti Samaroha Samiti Bhinasar
Publication Year1994
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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