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________________ विशिष्ट प्रवचन उदार अहिंसा श्री जिन अजित नमो जयकारी, तू देवन को देवजी। जितशत्रु राजा ने विजया, राणी को, आतजात त्वमेवजी । श्री जिन अजित नमो जयकारी ।। निरारम्भ और निष्परिग्रह रहना साधु का धर्म है, अल्पारम्भी और अल्पपरिग्रही बनना श्रावक-गृहस्थ-का धर्म है तथा महारम्भी और महापरिग्रही बनना मिथ्यात्वी का काम है। यहां यह विचार करना आवश्यक है कि गृहस्थ अल्पारम्भी, अल्पपरिग्रही किस प्रकार बन सकता है ? श्रावक स्थूल प्राणातिपात का त्यागी होता है। अतएव यह विचार कर लेना उपयोगी होगा कि यहां 'स्थूल' का क्या अर्थ है ? स्थूल शब्द सूक्ष्म की अपेक्षा रखता है और 'सूक्ष्म' 'स्थूल' की अपेक्षा रखता है। यदि 'सूक्ष्म' न होता तो स्थूल का होना सम्भव नहीं था । तो यहां स्थूल शब्द से क्या ग्रहण किया गया है ? ___यहां स्थूल शब्द का प्रयोग द्वीन्द्रिय से लेकर जितने जीव आबालवृद्ध सभी को सरलता से आंखों द्वारा दिखाई देते हैं, उनके लिए किया गया है। ऐसे जीवों से भिन्न, आंखों से न दिखाई देने वाले जीव, चाहे वे द्वीन्द्रिय आदि ही क्यों न हों, यहां सूक्ष्म कहलाएंगे। ____ मोटी बुद्धि वालों को यह बात एकाएक समझना कठिन होगा, पर विचारशील व्यक्ति इसे जल्दी समझ सकेंगे। शास्त्रकार ने एकेन्द्रिय जीव की हिंसा को हिंसा माना है पर उसका पाप पञ्चेन्द्रिय जीव की हिंसा के वरावर नहीं माना। _ जैन समाज में आज हिंसा-अहिंसा के विषय में बहुत भ्रम फैला हुआ है। बहुत से ऐसे व्यक्ति हैं जिन्होंने 'दया करो' का अर्थ समझ रखा है—सिर्फ छोटे-छोटे जीवों की दया करो। उन्होंने मानवदया प्रायः भुला दी है। एक बलाय ऐसी खड़ी हो गई है, जिसकी समझ में चींटी और मनुष्य की हिंसा का पाप एक ही समान है। शायद उन्होंने कंकर चुराने वाले को और जवाहरत चुराने वाले को भी समान ही समझ रखा होगा। __जैन समाज ने एकेन्द्रिय जीवों की रक्षा के लिए जब से मनुष्य –दया भुलाई है, तभी से इनका पतन आरम्भ हुआ है।
SR No.010525
Book TitleJawahar Vidyapith Bhinasar Swarna Jayanti Smarika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiranchand Nahta, Uday Nagori, Jankinarayan Shrimali
PublisherSwarna Jayanti Samaroha Samiti Bhinasar
Publication Year1994
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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