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________________ तो एक ही दिशा में उठते हैं उसी प्रकार श्रावक-श्राविका, साधु-साध्वी रूप चतुर्विध संघ को सम्यक् । यलपूर्वक एक साथ, एक दिशा में प्रयाण करना चाहिये । इस संघ के चारों पैर समान रूप से सामर्थ्यवान पैरों (साधु-साध्वी) का अनुसरण पिछले पैरों (श्रावक-श्राविका) को करना चाहिये । कामधेनु घास जैसे : को खाकर अमृत तुल्य दुग्ध प्रदान करती है, इसी प्रकार कान्फ्रेंस रूपी कामधेनु में भी यह सामर्थ्य होनी प्रभु महावीर के संघ में जो भी प्रवेश करे, चाहे वह कितना भी तुच्छ या निम्न क्यों न हो, उसे अमृतम गुणवान बना दे। संघ हितैषी, सेवा-समर्पित वना दे। कामधेनु के चार स्तन हैं। संघ के भी दान, शील भावना चार रतन हैं। कामधेनु के दो सींग हैं उसी प्रकार संघ के सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चारित्र दो रक्षक लोक में कामधेनु की बड़ी महिमा है। संघ की भी बड़ी महिमा है। सदस्य संघ को आत्मभे संघ सदस्यों की मनोकामना पूर्ण करें। अन्योन्याश्रय संबंध से चतुर्विध संघ का विकास करें। अपने अगले थांदला चातुर्मास में आपश्री ने समाज-सुधार को धर्म का आधार निरूपित सामाजिक कुरीतियों के निवारण हेतु प्रभावी उपदेश दिया, जिसके फलस्वरूप जो इकरारनामा सकल पंचा १६६५ में लिखित व हस्ताक्षरित रूप से जारी किया वह आज से लगभग १०० वर्ष पूर्व कल्पनातीत रहा होगा। आज भी समाज सुधार की उस दशा को हम प्राप्त नहीं कर सके हैं, जिससे बोध होता है । महान् समाज सुधारक थे। हाथी और सांप-एक बार आप थांदला में ही प्रवचन कर रहे थे। स्थानक में पर्याप्त स्थान : कारण छप्पर बनाया गया था जो राजपथ तक फैल गया था। आपका प्रवचन रूपी अमिय वर्षण चल ह कि मार्ग पर एक हाथी आया। महावत ने हाथी को इशारा किया और वह चुपचाप चारों घुटनों के बल घिसट कर छप्पर को बिना तोड़े सभा के पास से गुजर गया। मुनिश्री पर इस घटना का बड़ा प्रभाव पड़ा ने कहा कि तनिक से संकेत पर हाथी ने कैसा अपूर्व आत्म संयम प्रदर्शित किया ? महावत ने उसे सिखाया, उस विराटकाय प्राणी ने सब कुछ सीख लिया किन्तु सन्त नित्य उपदेश देते हैं और आप सुनते विचारिये आपमें कितना परिवर्तन हुआ है ? हमें इस घटना से सीख लेनी चाहिये। मेघकुमार का जीव में में हाथी था। इसी प्रकार एक रात्रि पौषधशाला में सर्पराज आ गए। पर्युषण पर्व के दिवस थे। वे राति श्रावक से टकराए। जिसने उन्हें परे धकेल दिया। सांप ने सारी रात्रि पौषधशाला में शांत भाव से बि प्रातः जब लोगों को घवराते देखा तो उसी प्रशांत भाव से सर्पराज विदा हो गए। मुनिथी इस घटना के प्रसंग में कहा करते थे कि प्राणिमात्र पर आप सभी के समभाव का प्रभ है। सांप पर भी पड़ा। अहिंसा में ऐसी अपूर्व शक्ति है कि सिंह और हिरन वैर त्याग कर अहिंसक की आकर सो सकते हैं। अगले जावरा चौमासे में वहां के नवाब साहब व पुरजन बहुत लाभान्वित हुए। इन्दौर चौमासे में आपने पदार्थ की अपेक्षा भावना को महत्त्वपूर्ण बताते हुए भौति
SR No.010525
Book TitleJawahar Vidyapith Bhinasar Swarna Jayanti Smarika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiranchand Nahta, Uday Nagori, Jankinarayan Shrimali
PublisherSwarna Jayanti Samaroha Samiti Bhinasar
Publication Year1994
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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