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________________ सन् १६८६ ___ साहित्य प्रचार तथा फण्ड एकत्रित करने हेतु एक उपसमिति गठित की गई, जिसमें निम्नांकित सदस्य मनोनीत किये गये - १. श्री हंसराजजी सुखलेचा २. श्री सुमतिलाल बांठिया ३. श्री निर्मल कुमार पूगलिया सन् १६८८ श्री सुमतिलालजी बांठिया को ट्रस्टी चुना गया। श्री चम्पालालजी बांठिया की स्मृति में व्याख्यान माला प्रारम्भ करने का प्रस्ताव पारित किया गया। जवाहर किरणावलियों का टाईटल नया तैयार कराया गया। सन् १६६१ शाला एवं महाविद्यालय स्तरीय भाषण प्रतियोगिता प्रारम्भ कर प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय स्थान प्राप्तकर्ता को पुरस्कृत करने का निर्णय किया गया। श्रीमान् माणकचन्दजी रामपुरिया द्वारा ११००० रु. की राशि भेंट की' गई जिसके ब्याज की राशि से प्रतिवर्ष योग्य विद्वान या छात्र को प्रदीप कुमार रामपुरिया पुरस्कार से सम्मानित किया जाने का प्रावधान है। श्री अन्नारामजी सुदामा (राजस्थानी के विद्वान) को १००० रु. की राशि प्रदान करने हेतु चयनित किया गया एवं श्री बलदेवदत्त सेवग को बी. काम. मेरिट लिस्ट में आने से २५१ रु. की राशि प्रदान की गई। श्री सुदामा ने पुरस्कार स्वीकार नहीं किया तो इसे भी ११००० रु. में मिला दिया गया। इस राशि रोप्राप्त व्याज की राशि से स्नातक स्तर पर जिले में सर्वाधिक अंक प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों को पुरस्कार प्रदान करने का निर्णय लिया गया। सन् १९६२ स्वर्ण जयन्ती स्मारिका प्रकाशित करने का निर्णय किया गया। इसकी रूपरेखा बनाई गई व क्षेत्रीय समितियों का गठन किया गया। चन्दा एकत्रित कर संस्था की ध्रुव निधि में वृद्धि करना भी प्रस्तावित है। पौषधशाला के हॉल के पीछे खुली जगह में वरांडा बनाकर इसका विस्तार किये जाने का निर्णय लिया गया। संस्था का छात्रावास सन् १६५३-५४ तक चलने के बाद बन्द हो गया था, इसे पुनः चालू करने हतु भवा. निर्माण की योजना भी बनी । अन्तिम सत्र में प्रारम्भिक से बी.ए. तक अध्ययन करने वाले २४ छात्र था या , कानोड़, छोटी सादड़ी, बड़ी सादडी, संगरिया मण्डी, जोधपर, बम्बोरा, देशनोक, गंगाशहर, रोहिणा, उदयपुर ." स्थानों के थे। छात्रों को जैन धर्म का अध्ययन भी कराया जाता था। हिन्दी साहित्य सम्मेलन व धामिक पका पा रतलाम की परीक्षाओं में भी छात्र प्रविष्ट हए। संस्था गौरवान्वित है कि यहां के छात्रों में अनेक प्रतिभावान छात्र समाज, धर्म, राष्ट्र की सेवा में संलग्न है। सर्वश्री भपराज जी जैन. लक्ष्मीलालजी दक, डॉ. महिनलालजा ११ अमृतकुमारजी मेहता, सौभाग्यमल जैन, मिट्ठालाल मुर्डिया, पार्श्व कुमार मेहता आदि के नाम उल्लेखनीय है। सन् १६६३ श्रीमद् जवाहराचार्य की ५०वीं स्वर्गारोहण तिथि आषाढ़ शुक्ला अष्टमी तदनुसार दिना १६६३ को खूब त्याग तप आराधनापूर्वक मनाये जाने का निर्णय किया गया तथा इस पुण्य दिवस अष्टमी तदनुसार दिनांक २७ जून इस पुण्य दिवस पर बाहर से
SR No.010525
Book TitleJawahar Vidyapith Bhinasar Swarna Jayanti Smarika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiranchand Nahta, Uday Nagori, Jankinarayan Shrimali
PublisherSwarna Jayanti Samaroha Samiti Bhinasar
Publication Year1994
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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