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________________ Asia के प्रथम कलर निर्माता बताया है। बाबूजी की ज्ञान पिपासा अद्वितीय थी। वे स्वयं रंग के फार्मले सीखते एक जर्मन इंजीनियर से सप्ताह में दो बार पांच मिनिट रंग-तकनीकी का प्रशिक्षण प्राप्त करने हेतु उन दिनों २५० प्रतिमाह परामर्श शुल्क देते थे। श्रावक व्रत की मर्यादा को दृष्टिगत रख आपने अर्थोपार्जन से निवृति लेकर सेठिय संस्था की स्थापना की। धार्मिक और नैतिक साहित्य का प्रकाशन संस्था की अमूल्य देन है। संस्था से १४४ ग्रन्ट प्रकाशित हुए हैं। जिनमें जैन सिद्धान्त बोल संग्रह भा. १ से ८, दशवैकालिक सूत्र, आचारांग सूत्र, उत्तराध्ययन सूत्र, प्रश्नव्याकरण सूत्र, नवतत्त्व आदि उच्च स्तरीय एवं प्रामाणिक सन्दर्भ ग्रन्थ हैं। सेठिया जैन पारमार्थिक संस्था की समाज को एक खास देन है शिक्षा के क्षेत्र में। आपने श्राविकाश्रम कन्या पाठशाला, किंडरगार्टन स्कूल, जैन विद्यालय, सेठिया जैन ट्रेनिंग कॉलेज, सेठिया छात्रावास आदि खोलकर चहुंमुखी विकास के नये आयाम ढूंढ निकाले । सेवा और परोपकार की भावना से आपने सेठिया जैन होमियोपैथिक औषधालय स्थापित किया जो आज भी अनवरत रूप से कार्यरत है। यहां निःशुल्क चिकित्सा की व्यवस्था है और प्रतिवर्ष ८० हजार रोगियों का इससे लाभान्वित होना एक कीर्तिमान है। सेठिया जी सदैव जैन संस्कृति एवं साहित्य के संरक्षण में लगे रहे। जैन समाज की विभिन्न इकाईयों में एकता, सहयोग एवं स्नेह की वृद्धि की दिशा में आप बराबर सजग रहे। बीकानेर में 'सेठिया धार्मिक भवन (सेठिया कोठड़ी) का ट्रस्ट बनाकर अपने ज्ञान-आराधना की स्थायी व्यवस्था की। २५० फीट लम्बे व ७५ फीट चौड़े भवन में ४००० श्रोताओं के बैठने की व्यवस्था है। इस भवन का मुख्य द्वार स्थापत्य कला का नमूना है। बाबूजी सन् १६२६ में बम्बई में सम्पन्न अखिल भारतवर्षीय श्वे. स्था. जैन कान्फ्रेंस के सप्तम अधिवेशन के सभापति चुने गए। उनका मार्गदर्शन पाकर कान्फ्रेंस ने सर्वतोमुखी प्रगति की है। आप एक दशक तक बीकानेर म्युनिसीपल बोर्ड के कमिश्नर रहे और सन् १६२६ में बोर्ड के वाइस प्रेसिडेंट भी चुने गये। सन १६३१-३२ में आप ऑनरेरी मजिस्ट्रेट रहे और सन् १६३८ में बीकानेर लेजिस्लेटिव एसेम्बली के सदस्य चुने गए। बीकानेर राज्य व जनता की निःस्वार्थ भाव से सच्ची सेवा करने में आपका नाम अमर रहेगा। बाबूजी स्वभाव से मृदुल, शान्त व उदार थे। उनके पास पहुंचने वाला हर व्यक्ति अनुभव करता कि __वह ज्ञान, बुद्धि और अनुभव के विशाल सागर तट पर बैठा आनंदमयी हिलोरों से भावविभोर हो उठा है। कुशाग्र . बुद्धि एवं अथक परिश्रम से आपने व्यवसाय व समाज सेवा क्षेत्रों में अमिट छाप छोड़ी है। सन् १६३० में आपने ' बीकानेर में ऊन प्रेस व ऊन बरिंग फैक्ट्री खोली, जो बीकानेर की प्रथम इंडस्ट्री थी और आज भी एक अग्रणी प्रतिष्ठान है। ऊन व्यवसाय आपकी दूरदर्शिता के प्रति ऋणी है कि आज इस क्षेत्र में अभूतपूर्व विकास हुआ है और बीकानेर एशिया की सबसे बड़ी ऊन मण्डी है। बाबूजी ने अपने जीवन में 'सादा जीवन उच्च विचार' सिद्धांत को ही अपनाया। आपका हृदय धार्मिक कार्य, मानव-सेवा एवं समाज-सेवा से ओत-प्रोत रहा। व्यसनों से दूर रहकर आप धर्मनिष्ठ बने रहे और धर्म शिक्षा के प्रचार प्रसार को अपने जीवन का मिशन माना। अनेक लोगों को जीवन-दिशा देकर आपने सेवा और परोपकार का आदर्श स्थापित किया। भौतिक सुखों को आपने अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया। वे तो गृहस्थी होते हुए मा निर्लिप्त योगी की तरह जीये। धन को उन्होंने परोपकार का सहायक ही माना अन्तिम ध्येय नहीं। वास्तविक जया में वे विदेह थे। बाबूजी का पार्थिव शरीर आज हमारे बीच नहीं है परन्तु आत्मपिण्ड रूप में की गई उनकी समाज सेवा सदा स्मरणीय है। उनका स्वर्गवास श्रा. शु. १ सं. २०१६ को हो गया परन्त सेठिया जैन पारमार्थिक संस्था उनका १५६
SR No.010525
Book TitleJawahar Vidyapith Bhinasar Swarna Jayanti Smarika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiranchand Nahta, Uday Nagori, Jankinarayan Shrimali
PublisherSwarna Jayanti Samaroha Samiti Bhinasar
Publication Year1994
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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