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________________ जीवन का चरम लक्ष्य क्या है ? सत्ता का स्वरूप क्या है ? ज्ञान का साधन क्या है ? सत्य ज्ञान का स्वरूप और सीमाएँ क्या है ? शुभ-अशुभ क्या है ? नैतिक निर्णय का विषय क्या है ? व्यक्ति और समाज का सम्बन्ध क्या है ? इन लौकिक व परोक्ष के विषयों पर उन्होंने जो समाधान अपने प्रवचनों में किया है। वह आज भी उतना ही प्रासंगिक प्रतीत होता है। भारतीय दर्शन का उन्हें मौलिक ज्ञान था। धर्म की परिभाषा उनकी अपनी मौलिक थी। स्वामी विवेकानन्दजी, आचार्य नरेन्द्रदेव जी व डाक्टर राम मनोहर लोहिया ने धर्म की जो व्याख्या की, उसकी जो परिभाषा दी, लगभग वैसा ही धर्म के सम्बन्ध में गुरुदेव का चिन्तन था। धर्म के विषय में उनका मानना था— 'जहां धर्म अर्थ का मार्ग दर्शक नहीं है, वहां धर्म अर्थ का अनुचर बन जाता है'। लोक को सुधारने के लिए ही परलोक की कल्पना करने में भी उनका विश्वास झलकता है। उन्होंने जनसाधारण को गुमराह होने एवं भटकने से बचाने में पूरी ईमानदारी का परिचय दिया है। उन्होंने दर्शन की उन वातों को ही अधिक महत्त्व दिया जो व्यक्ति के वर्तमान जीवन के लिए विशेष उपादेय है। उन्होंने दर्शन के साथ जुड़े कर्मकाण्ड, रीति-रिवाज, रूढ़ियाँ, अन्धविश्वास व मिथकीय बातों को धर्म का अंग नहीं माना। वे सत्य के महान् उपासक थे। उन्होंने अपने काल में समाज को प्रगतिशील बनाने के लिए अथक प्रयास किया। उनके हर प्रवचन में इसकी झांकी है। समाज ही हमारा अयोग्य था, ऐसे धर्मगुरु को पाकर भी जहां का तहां अटका रहा, यह बड़े दुर्भाग्य की वात ही है। आज भी यह सम्प्रदाय वर्तमान आचार्य के सान्निध्य में वहीं पिछड़ा बैठा है, रूढ़ियों से जकड़ा पड़ा है। कुभकरण की सी गहरी निद्रा में सो रहा है जागने का नाम नहीं लेता है, तो फिर कैसे क्या हो ? उस क्रांतिकारी युगपुरुष के अर्धशताब्दी पुण्यतिथि पर यदि हमारा सम्प्रदाय कुंभकरणी निद्रा को त्याग कर जाग जाये तो, बस उस महायोगी श्री जवाहराचार्य के प्रति सच्ची और उपयोगी हार्दिक श्रद्धांजलि आज भी सही सावित हो सकती है। आज अर्थ के पाश में फंसे धर्मगरुओं की विचित्र दशा देखकर बड़ी हैरानी होती है। क्या इनके अध्यात्म के प्रभाव का यही नतीजा है। इनके पीछे जो लाखों-करोड़ों समाज खर्च कर रहा है क्या यह राष्ट्र के लिये जामशाप नहीं बनता जा रहा है ? क्या हमारे सामर्थ्य व शक्ति का दुरुपयोग नहीं हो रहा है? हमें उस महान पुरुष की पुण्यतिथि पर क्रांतिकारी कदम उठाना जरूरी है।
SR No.010525
Book TitleJawahar Vidyapith Bhinasar Swarna Jayanti Smarika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiranchand Nahta, Uday Nagori, Jankinarayan Shrimali
PublisherSwarna Jayanti Samaroha Samiti Bhinasar
Publication Year1994
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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