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________________ विवाह और दाम्पत्य : आचार्यश्री की नजर में डॉ. अजय जोशी विवाह एक सामाजिक संस्था है। यह मानव जीवन का आवश्यक अंग भी है। विवाह के द्वारा ही पुरुष एवं नारी एक इकाई के रूप में जीवन-यापन करते हैं तथा परिवार व समाज के निर्माण में सहायक होते हैं । प्रारम्भिक काल में विवाह संस्था एक पवित्र कार्य था । इसमें कन्या की भी राय का पूरा सम्मान किया जाता था । जैनाचार्य श्री जवाहरलालजी महाराज इस बात का समर्थन करते हुए कहते हैं कि 'प्राचीन काल में विवाह के सम्बन्ध में कन्या की भी सलाह ली जाती थी और उसे वर खोजने की स्वतन्त्रता थी । माता-पिता इसी उद्देश्य की पूर्ति हेतु स्वयंवर रचा करते थे । ' श्री जवाहरलालजी महाराज विवाह के लिए स्त्री-पुरुष के स्वभाव में समता पर भी जोर देते हैं; उनके अनुसार - 'स्त्री व पुरुष के स्वभाव जहाँ समता नहीं होती वहाँ शान्तिपूर्वक व्यवहार नहीं चल सकता। विवाह का उत्तरदायित्व अगर माता-पिता समझते हों तो प्रतिकूल स्वभाव वाले पुत्र या पुत्री का विवाह उन्हें नहीं करना चाहिये।' वर्तमान संदर्भों में आचार्यश्री का यह कथन काफी प्रासंगिक है। व्यवहार में हम देखते हैं कि जहाँ कहीं पति-पत्नी में गृह-कलह की स्थिति है वह पारस्परिक स्वभाव नहीं मिल पाने का ही परिणाम है। यह स्थिति न केवल पति-पत्नी के लिए घातक है वरन् उनके पूरे परिवार व समाज के लिए भी उतनी ही घातक है । पाणिग्रहण का उद्देश्य खान-पान तथा भोग-विलास नहीं है। यह एक पवित्र धार्मिक कार्य है। इस संदर्भ में आचार्यश्री का कहना है कि ‘आपने पत्नी का पाणिग्रहण धर्मपालन के लिए किया है। इसी प्रकार स्त्री ने भी आपका। जो नर या नारी इस उद्देश्य को भूल कर खान-पान और भोग-विलास में ही अपने कर्तव्य की इतिश्री समझते हैं वे धर्म के पति-पत्नी नहीं वरन् पाप के पति-पत्नी हैं।' यदि हम चाहते हैं कि हम आदर्श दाम्पत्य जीवन जीकर वास्तविक धर्म पति-पत्नी बनें तो श्री जवाहराचार्य की इस शिक्षा का अनुकरण ही हमें सही मार्ग दिखा सकता है। आचार्यवर ने दाम्पत्य जीवन में पारस्परिक कर्त्तव्यों के निर्वाह पर बहुत बल दिया है। उनका कहना है कि- 'पति-पत्नी की विडम्बना देख कर किसका हृदय आहत नहीं होगा ? जिन्होंने पति और पत्नी बनने का उत्तरदायित्व स्वेच्छा से अपने सिर लिया है वह भी पति-पत्नी के कर्त्तव्य को नहीं समझें, यह कितनी खेद की बात है ?' उन्होंने पति-पत्नी के कर्त्तव्यों का अधिक खुलासा करते हुए कहा, कि – 'दम्पत्ति का सम्बन्ध एक-दूसरे को सहायता देकर आत्म कल्याण की साधना के समर्थ बनाने के लिए है । जहाँ इस उद्देश्य की पूर्ति होती है वहीं सात्विक दाम्पत्य सम्बन्ध समझा जा सकता है । ' ११७
SR No.010525
Book TitleJawahar Vidyapith Bhinasar Swarna Jayanti Smarika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiranchand Nahta, Uday Nagori, Jankinarayan Shrimali
PublisherSwarna Jayanti Samaroha Samiti Bhinasar
Publication Year1994
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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