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________________ समाज पर हावी हैं। आप और हम सभी स्वयं को टटोलें कि हम इन सामाजिक बुराइयों को सदा सर्वदा के लिए समूल नष्ट करने के लिए समुचित, सतत और सच्चे प्रयास कितना कर पा रहे हैं। चिन्तन, मनन और अनुकरण के लिए आचार्य श्री के कतिपय विचार प्रस्तुत हैं - 'अगर आप समाज में प्रतिष्ठा पाने के उद्देश्य से सामायिक करते हैं, कीर्ति के लिए उपवास करते हैं और सम्मान पाने के लिए भक्ति करते हैं तो समझ लीजिए कि अभी मोह की ग्रन्थि नहीं खुली है।' (बीकानेर के व्याख्यान : २५३) आइये हम सोचें हमारे सामायिक, उपवास और भक्ति के उद्देश्य क्या हैं ? 'दान के साथ अगर अभिमान आ गया तो समझ लीजिए आपकी पवित्र वस्तु को चांडाल स्पर्श हो गया।' (भक्ताम्बर व्याख्यान : २१४) 'राम या अर्हन्त का वेश धारण करके पापाचरण करने वालों के समान और कोई नीच नहीं हो सकता।' (सम्यक्त्व पराक्रम भाग १ पृष्ठ ५८) 'धनवंत को आदर करे, निर्धन को करे दूर ते साधु जाणो मती, रोटी तणा मजूर' (जामनगर व्याख्यान १३८) ऐय्याशी और आलसीपन के विरुद्ध आचार्यश्री की चेतावनी वाणी इस प्रकार है - 'अब ऐय्याशी के दिन नहीं रहे। मौज-मजे उड़ाने के दिन लद गये, इसलिए सादगी धारण करो। विलासिताओं को तिलांजलि दो।' _ 'लोगों के दिल से हराम नहीं गया है। उसके निकाले विना व्यक्तियों का सुधार नहीं हो सकता, आर व्यक्तियों के सुधार के अभाव में समाज-सुधार का अर्थ ही क्या है ?' (जीवन धर्मः कहाँ से कहाँ : २८६) आचार्यश्री के जोधपुर में दिए धर्म-प्रवचनों की एक कृति है 'जीवन-धर्म' जिसमें 'परमात्मा प्राप्ति क सरल साधन' नामक अध्याय में सामाजिक कुरीतियों के उन्मूलन के लिये और समाज को रूढ़ियों से मुक्ति दिला के लिए आचार्यश्री ने २० सूत्र प्रस्तुत किये थे जो आज भी हम श्रावकों के सम्मुख स्व-मूल्यांकन के लिए क ., रूप में खड़े हैं। प्रत्येक सूत्र पर हमें स्वयं की स्थिति आंकनी है जैसे पहला सूत्र है जुआ-निषेध। हम स्वय, ना है क्या आज मैंने जुआ खेला है, खिलवाया है, या अनुमोदन किया है। ठीक इसी प्रकार से आचाय साये अन्य सूत्रों के सम्बन्ध में स्वयं से प्रश्न पूछकर और स्वयं के उत्तर एक कागज पर लिखकर रोजाना र * सोने से पहले अपने उत्तर के आधार पर अपना मूल्यांकन करें और सुबह उठते ही इन २० सूत्र का * ये संकल्प करें कि बीत गये कल की अपेक्षा आज इन सूत्रों के रात्रि समय चिन्तन में स्वयं के मूल्याक चिक अंक अर्जन करूंगा। :०२
SR No.010525
Book TitleJawahar Vidyapith Bhinasar Swarna Jayanti Smarika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiranchand Nahta, Uday Nagori, Jankinarayan Shrimali
PublisherSwarna Jayanti Samaroha Samiti Bhinasar
Publication Year1994
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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