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________________ अमर - जवाहर नथमल लूणिया आज नहीं तुम, यश- काया पर ही श्रद्धानत हो जाती। जैन जगत् के अगर जवाहर, याद तुम्हारी है अती ।। प्रफुल्ल-पद्म सा वदन अरुण तव शांति-सुधा बरसाता था । देख देख अभिलषित जगत् का मन- मिलिंद मुसकाता था। ऊपा की बिखरी सुपमा में, बालारुण जब खिलता था । ध्यान मन तव मंजु - मूर्ति लख, तन का ताप विसरता था । अब उस दीपित मुखमंडल की कांति हृदय अकुला जाती । जैन जगत् के अमर जवाहर याद तुम्हारी आती। जड़-चेतन की, पाप-पुण्य की, ईश्वर-ब्रह्म, चराचर की । दर्शन- सम्मत दी व्याख्याएं, ज्ञान, भक्ति, तप, संवर की । कल्याणी वाणी में जब तुम सृष्टि-स्वरूप बताते थे । नतमस्तक श्रोता गद्गद् हो, अधु विन्दु दलकाते थे । अब उन बीती बातों पर ही है। जैन जगत् के अगर जवाहरा ग्राम, नगर और राष्ट्रधर्म का जब करते थे विश्लेषण। जनजीवन में सिगट हंसती, सुरुचिपूर्ण आध्याि तु स्वदेशी, ची-चरा, देसी । कृषि, प्राणज्योद्योगों पर थे, ग
SR No.010525
Book TitleJawahar Vidyapith Bhinasar Swarna Jayanti Smarika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiranchand Nahta, Uday Nagori, Jankinarayan Shrimali
PublisherSwarna Jayanti Samaroha Samiti Bhinasar
Publication Year1994
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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