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________________ जीवन - भावन की यह धारा सदा प्रवाहित कूल - किनारा, जब से सृष्टि चली है तब से चलती एक साथ औढव से । विन्दु सरीखे हैं सव प्राणी नियति डोर है सृष्टि-निशानी; आया परमलोक से मानव जन्म धरा पर धरकर अभिनव । आना-जाना जीवन-क्रम है यही मनुज की जड़ता तम है; वह अनन्त वन खिल जाता है उससे नर जब मिल जाता है। यही चाह है इस आत्मा की कटे अँधेरी घोर अमा की, कटता है जब तम का घेरा दिखता उज्ज्वल दिव्य सवेरा । आना-जाना तभी छूटता काल मनुज को नहीं लूटता यही लक्ष्य है परम प्राप्ति का जड़ - जीवन की चरम व्याप्ति का । इसी ओर है सबको बढ़ना उर्ध्वमुखी हो तम से कढ़ना; तम से निकल मनुज जब जाता तभी सिद्धि जीवन की पाता । लेकिन जीवन का आरोहण बड़ा कठिन है यह आरक्षण । पग-पग संकट, बाधा आती काँप हृदय की दृढ़ता जाती । जिसमें है निष्ठा का दृढ़-बल प्राप्त वही करता यह संबल; सर्ग इक्कीस इसीलिए आचार्य सदा ही तत्त्व बताते साधन का ही । सभी तरह इस गन को निर्मल करना है जीवन को उज्ज्वल, तभी लक्ष्य वह मिल सकता है। मुँदा कमल-पल खिल सकता है। साधन घोर कठिन लगता है लेकिन मानव ही चलता है साध्य किसी का कब असाध्य है ? मनुज कर्म से सदा बाध्य है । अपना साधन खुद करना है मार्ग ज्योति का ही धरना है, किन्तु हृदय इस योग्य बनाओ दिव्य ज्योति का ज्वार जगाओ। मन उदार जय हो जायेगा धर्म प्रकाश तभी आयेगा; मन को है साधन में तपना हृदय सहिष्णु बनाओ अपना । अपनी आत्मा ही जगती है देखो, सव में क्या लगती है, कोई जग में भिन्न नहीं है आत्म-ज्योति परिछिन्न नहीं है । भिन्न किरण पर, एक दिवाकर प्राण-प्राण का है ज्योतिर्धर; यही भाव अपनाना होगा मन को स्वयं जगाना होगा । हित है इसमें ही इस भव का वरण करो इस सात्विक लव का पूज्यपाद का जीवन दर्शन निखिल विश्व का पावन - चन्दन ।
SR No.010525
Book TitleJawahar Vidyapith Bhinasar Swarna Jayanti Smarika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiranchand Nahta, Uday Nagori, Jankinarayan Shrimali
PublisherSwarna Jayanti Samaroha Samiti Bhinasar
Publication Year1994
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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