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________________ हिंदी पदार्थ (एम समकितपूर्वक) इस प्रकार सम्यक्त्वपूर्वक (वार व्रत संलेखणा सहित ) द्वादशं व्रत और संलेखनायुक्त (एहेने विषय) इनके विषय (जे कोई) यदि कोई (अतिक्रम) मनके द्वारा नियम किये हुए पदार्थों की इच्छा करना उसका नाम अतिम है (व्यतिक्रम) जो वचनसे कहा जाए कि मै नियमको भग करूंगा उसका नाम व्यतिक्रम है (अतिचार) जो कायद्वारा वस्तु भोगनेके लिये हाथमें ली जाये, (अणाचार) और भोग ली हो उसका नाम अनाचार है (जाणता) जान करके (अजाणतां) न जानने हुए (मन वचन कायायें करी) मन वचन काय करके (सेव्यो होय ) दोपसेवन किए हों ( सेवराव्यो होय ) अन्य आत्माओंको आसेवन करनेका उपदेश दिया हो (सेवता प्रत्ये अणुमोद्यो होय) जो अनिचारोंको सेवन करते है उन्होंकी अनुमोदना की हो (ते अनंता सिद्ध केवलीनी साखें) उनको अनंत सिद्ध केवलियोंकी साक्षिसे (मिच्छा मि दुक्कडं) उस दुष्कृतसे पीछे हटता हूं॥ भावार्थ-सम्यक्त्वपूर्वक द्वादश वन संलेखनापूर्वक इनके विषय यदि कोई अतिक्रम, व्यतिक्रम, अतिचार, अनाचार, जानते हुए, वा न जानते हुए मन वचन काया करके यदि आप सेवन किए हों वा अन्य जीवोंको उपदेश किया हो जो आसेवन करते है उन्होंकी अनुमोदना करी हो तो उस अतिचार रूप दोषसे केवली भगवान् वा सिद्ध भगवानोकी साक्षिसे मै पाछे हटता हूं। अठारे पापस्थानक-प्राणातिपात १ मृषावाद २ अदत्तादान ३ मैथुन ४ परिग्रह ५ क्रोध ६ मान ७ माया ८ लोभ ९ राग १० द्वेष ११ कलह १२ अभ्याख्यान १३ पैशुन्य १४ परपरिवाद १५ रति अरति १६ मायामोसो १७ मिथ्यात्व दर्शनशल्य १८
SR No.010524
Book TitleAgam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherLala Munshiram Jiledar
Publication Year1915
Total Pages101
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_aavashyak
File Size4 MB
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