SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 76
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (सावज्जजोगनुं ) पापयुक्त योगों से ( वेरमणं ) - निवृत्ति करना ( जाव ) यावत् काल पर्यन्त ( नियमं ) सामायिकका नियम है तावत्काल पर्यन्त ( पज्जुवासामि ) पर्युपासना करना हूं अर्थात् सामायिकके कालको सेवन करता हूँ (दुविहं ) द्विकरण (तिविहेणं) तीन योगों से जैसे कि - ( न करे - मि ) सावद्य योगोंको सेवन न करूं ( न कारवेभि ) नाही आसेवन कराऊं (मणसा) मन करके (वयसा ) वचन करके (कायसा ) काय करके ( एहवी ) इस प्रकारके (सद्दहणा ) सामायिककी श्रद्धा [ रुत्रि ] ( परूपणा) दिवेचना ( करियें तिवारे फरसनायें करी शुद्ध ) जब करी जाये अर्थात् सामायिक स्पर्श की जाये तब ही शुद्ध होती है ( एहवा) ऐसे ( नवमा) नवमे ( सामायिक व्रतना) सामायिक व्रतके (पंच) पांच (अइयारा) अतिचार ( जाणियव्वा ) जानने योग्य तो हैं किन्तु ( न समायरियव्त्रा ) आचरणे योग्य नहीं हैं ( तंज्जहा) तद्यथा (ते) उनकी ( आलोउं ) आलोचना करता हूं (मणदुप्पणिहाणे) मन दुष्ट वर्ताया हो ( वयदुप्पणिहाणे ) वचन दुष्ट उच्चारण किया हो (कायदुप्पणिहाणे ) कायका योग दुष्ट धारण किया हो ( सामाइयस्स अकरणिया९) शक्ति होने पर भी सामायिक न करी हो, तथा, सामायिक करके सामायिक के कालको विस्मृत कर दिया हो फिर ( सामाइयस्स) सामायिकको ( अणवुट्टियस्स करणियाए) विना काल पार लिए हो (जो मे ) जो मैने ( देवसि ) दिवस सम्बन्धि (अध्यारो कउ ) अतिचार किए हुए है ( तस्स मिच्छा मिदुक्कडं ) उन अतिचार रूप पापोंका फल निष्फल हो | भावार्थ - नवमे सामायिक व्रतको द्विकरण तीन योगों से धारण करके पात्रों ही अतिचारोंको छोड़े। सम, आय, इक, इनकी संधि करनेले सामायिक शब्द सिद्ध होता है, जिसका अर्थ हो यह है, कि जिसके करने से शान्तिका लाभ होवे उमीका ही नाम सामायिक व्रन हे अपितु सावध योगोंका परित्याग कर फिर उस कालको शुभ क्रियामें ही व्यतीत करे | L
SR No.010524
Book TitleAgam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherLala Munshiram Jiledar
Publication Year1915
Total Pages101
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_aavashyak
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy