SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 73
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कर्मोदयसे *रसवाणिजादि कर्म करने पड़ जायें तो अयत्नसे काम कदापि न करे, क्योंकि अयत्नसे अनेक जीवोंकी घात होना संभव है, अतः विना यत्न कोई भी क्रिया न करे । जिन लोगोंको स्नानादि विषय शंका रहा करती है उनको योग्य है सप्तम व्रतको पठन करनेका अभ्यास करें, फिर .. इस व्रतके पाचों ही अनिचारोंको वनके उक्त व्रतको शुद्धतापूर्वक पालन करें । अथ अष्टम व्रत विषय ॥ __ आठमुं अनर्थदंड विरमण व्रत ते चउविदे अणत्यादंडे पण्णते तंजहा अवज्झाणायरिय पमाया. यस्यि हिंसप्पयाणे पावकम्मोवएसे एहवा अनर्थदंड सेववाना पञ्चक्खाण जावजीवाय दुविहं तिविहेणं न करेमि न कारवेमि मणला वयता कायसा एहवा आठमा अनर्थदंड विरमण व्रतना पंच अइयारा जा. णियधा न समायरियम्वा तंजहा ते आलोऊ कंदप्पे कुक्कइए मोहरिए संजुत्ताहिगरणे उवभोग परिभोग • अइरते जो मे देवसि अइयारो कंउ तस्स मिच्छा ‘मि दुकडं ॥ हिंदी पदार्थ-(आठमुं) अष्टम (अनर्थ दंड ) अनर्थदंड-विनाही कारण जीवोकी हिंसा करना वा अन्य आत्माओको दड़ित करना (विर. मण व्रत) इससे निवृत्ति भूत जो आठवां बन है, (ते) वह (चउविहे) चतुर्विधसे (अगत्यादडे) अनर्थ दंड (पण्णत्ते) प्रतिपादन किया है (तज्जहा) . * किन्तु मदिरादि पदार्थोंका व्यापार तो कभी भी न करे अपितु इनका सर्वथा ही त्याग करे ॥ - -
SR No.010524
Book TitleAgam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherLala Munshiram Jiledar
Publication Year1915
Total Pages101
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_aavashyak
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy