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________________ २७ हिंदी पदार्थ - ( नमो ) * (नमः) नमस्कार ( अरिहंताणं ), अर्ह - द्द्भ्यः अहू पूजाया धातुसे जो शतृ प्रत्ययान्त होकर अर्हत् शब्द बनता है तिसका नाम प्राकृत भाषामें अरिहत है, अर्थात् जो सबके पूज्य सर्वज्ञ सर्वदश हैं तिन अरिहत भगवन्तोंके ताई नमस्कार हो, अर्थात् उनको नमस्कार हो, ( नमो ) ( नम) नमस्कार ( सिद्धाण) (सिद्धेभ्यः) विधूसराधौ धातुसे जो 'क्त' प्रत्ययान्त होकर सिद्ध शब्द बना है अर्थात् जो सिद्ध बुद्ध अजर अमर अशरीरी सर्वज्ञ सर्वदर्शी हैं जिनके ताई नमस्कार हो, ( नमो ) (नमः) नमस्कार ( आयरियाणं ) ( आचार्येभ्य ) जो आडू उपसर्ग पूर्वक चर् गति भक्षण धातुसे कृदन्तका घ्यण् प्रत्ययान्त होकर सिद्ध होता है अर्थात् आचायोंके ताई नमस्कार हो, ( नमो ) ( नमः) नमस्कार हो ( उवज्झायाणं ) ( उपान्यायेभ्यः ) उपाध्यायोंके ताई जो कि उप अधि उपसर्ग पूर्वक इड् अध्ययने धातुसे कृदन्तका घञ् प्रत्ययान्त होकर बनता है, ( नमो ) (नमः) नमस्कार हो, ( लोए सव्वसाहूण ) 1 लोक दर्शने, सृगतौ, * तथा कोई २ पुरुष ऐसे भी भाषण करते हैं कि (णमोकार ) शब्द ही शुद्ध है अर्थात् जिसके पूर्व णकार होवे वही शुद्ध है, अन्य सर्व अशुद्ध हैं, किन्तु प्राकृत व्याकरणमें इस प्रकारसे लिखा है यथा-वादी ॥ प्रा० भ० ८ पा० १ सू० २२९ || असयुक्तस्यादी वर्तमानस्य नस्य णो वा भवति । - नरो | नई-नई - इति ॥ पंच पदकी चूलिका इस प्रकारसे है जैसेकि - एसो पच णमोक्कारो सव्य पात्र पणासणी मगलाण च सधेसिं पदम डवइ मगल ॥ अथार्थान्वय:: - ( एसो ) ( एष ) यह (पच ) ( पञ्च ) पश्च (नमोक्कार ) ( नमस्कार ) नमस्काररूप पद ( सव्व ) ( सर्व ) सारे ( पाव ) ( पाप ) पापके ( पणासणी ) ( प्रणाशनः) प्रणाशनहार हैं अर्थात् पापके नष्ट करनेवाले हैं, (मगलाण) (मगलाना) मगठीक हैं (च) (च) और अपितु च अव्यय है (स )ि (सर्वेश) सर्व स्थानोंपरि पढे हुए ( पढमं ) दध्यादि पदार्थों से पूर्व ( हवइ ) ( मगल ) ( मङ्गलम् भावार्थ - इम महामन्त्र के पाञ्च ही नमस्काररूप ) ( प्रथम ) प्रथम अर्थात् मङ्गलीक है | पर सर्व पाप नाश करनेवाले हैं तथा मगलोक और सर्व स्थानोपरि पठन किये हुए दध्यादि पदार्थोंसे भी पहिले मगलीक हैं क्योंकि भनत गुणयुक्तोक्त महामन्त्र है ॥
SR No.010524
Book TitleAgam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherLala Munshiram Jiledar
Publication Year1915
Total Pages101
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_aavashyak
File Size4 MB
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