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________________ 'त्तिया लेसिया संघाइया संघट्टिया परियाविया किलामिया उद्दविया ठाणा उठाणं संकामिया जीवियाउ ववरोविया जो मे देवसि अइयार कओ तस्त मिच्छा मि दुक्कडं ॥ २ ॥ हिदी पदार्थ-(इच्छाकारण) आपकी इच्छापूर्वक (सदिसह) वा आपकी आज्ञानुसार ( भगवन् ) हे महा भाग्यवान् (इरियावहिय ) जो चलनेके समय हिंसादि क्रिया हुई है सो उस क्रियासे मै ( पडिकमामि) पीछे हटता हु अर्थात् हिंसादि क्रियाओंसे निवृत्ति करता हू। तब गुरु कहने लगे (पडिक्कमह) हे शिष्य ! सावध क्रियाओंसे शीघ्र ही पीछे हटो । तव शिप्यने कहा (इच्छ) आपकी आज्ञा मुझे स्वीकार है और मै भी यही ( इच्छामि ) इच्छा करता हू । यह सर्व सूत्र सामायिक कर्ताके विनयके ही सूचक है किन्तु आलोचनाके निम्न लिखित सूत्र है-(इरिया वहियाए) मार्गमें चलते समय जो मेरेसे विना उपयोग ( विराहणाए) विराधना हुई हो अर्थात् विना उपयोग चलते समय किसी भी जीवकी विराधना यदि हुई हो तो मै उस विराधनासे (पडिक्कमिउ) निवृत्ति करता है क्योंकि विराधना (गमणागमणे) आने जानेसे ही होती है सो यदि गमनागमनसे (पाणकमणे) प्राणी उपरि आक्रमण हो गया हो, इसी प्रकार (बीयकमणे) बोजोपरि (हरियकमणे)हरिउपरि (उसा) ओसोपरि ( उतिंग) कीड़ियोके भवनोपरि (पणग) पांच प्रकारको वनस्पति ( दग) पाणी (मट्टी) वा सचित मृत्तिका उपरि (मक्कडा ) कोई जीव विशेष (सताणा ) वा जालोपरि (संकमणे) आक्रमण हुआ हो (जे) जो (मे) मेरेसे (नीवा ) जीवोंका उक्त विधिसे नाश हुआ हो जैसे कि-(एगिदिया) एकेन्द्रिय जीव पृथिवी पाणी अनि वायु वनस्पति (वेइंदिया) द्विइंद्रियं जीव जैसे गड़ों पाचं वर्णकी सूक्ष्म वनस्पति होती है जैसे कि निगोदादि, सो पांच पर्ण निम्न प्रकारसे हैं: कृष्ण १ पीत २ रक्त ३ हरित ४ श्वेत ५॥
SR No.010524
Book TitleAgam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherLala Munshiram Jiledar
Publication Year1915
Total Pages101
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_aavashyak
File Size4 MB
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