SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 15
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ करे । नित्यम् प्रति ४ लोगस्सका ध्यान करे, फिर नमो अरिहंताणं पढ़कर एक लोगस्स उज्जोयगरेका पाठ और दो वार इच्छामि खमासमणोका पाठ , पढ़कर, फिर तिकवुत्तोके पाठसे वंदना नमस्कार करके यथाशक्ति प्रत्या ख्यान करे। यदि गुरु प्रत्याख्यान करवाएं तो वोसिरामि आप कह लेवे। फिर पूर्व विधिपूर्वक दो नमोत्युणके पाठको पढ़े और समय धर्म ध्यानमें व्यतीत करे । जव सामायिक पूर्ण हो गइ ज्ञात करे तब "इच्छाकारण" इत्यादि सूत्र पढके "तस्सोत्तरी करणेणं" के पाठको पठन करे। तत्पश्चात् एक "लोगस्त उज्जोयगरे'का ध्यान करे, फिर "नमो अरिहंताणं" ऐसे कहके ध्यान पार करे। एक लोगस्स उज्जोयगरेके पाठको उच्च खरसे पढ़े। फिर प्राग्वत् दो नमोत्युणं पढ़के नवमा सामायिक व्रत इस सूत्रको पढे। एतावन् मात्र सूत्रोंके पठन करनेसे सामायिककी आचना हो जाती है। फिर चतुदेश नियम धारण करे जिनके करनेसे महान् काँका आलव निरोध होता है, सो सर्वथा आत्रकका निरोध हो जानेपर जीव मोसाधिकारी बन जाते हैं। ॥ इति विधि समाप्त ॥ -- - - * पक्षिको १२, चातुर्माप्तिको २०, सम्वत्सरीको ४० का ध्यान करना चाहिये ॥
SR No.010524
Book TitleAgam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherLala Munshiram Jiledar
Publication Year1915
Total Pages101
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_aavashyak
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy