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________________ १० प्रकार कहने लगे - कौन है मृत्युकी इच्छा करनेवाला और हीन लक्षणोंका धनी, जिसने मुज्झ शयन किये हुएके चरणकमलोंका स्पर्श किया है ? इस प्रकार शैलक ऋषिके भयानक वचन सुनकर पंथकजी भयको प्राप्त हुए और विनयपूर्वक दोनों हाथ जोड़कर निम्न प्रकारसे विज्ञप्ति करने लगे किहे भगवन्! मैं पंथक नामक साधु प्रतिक्रमण कर रहा हूं, मैने देवसि सम्बन्धि पडिक्कमणा कर लिया है और चातुर्मासी सम्बन्धि प्रतिक्रमणकी क्षमावना करके आपको वंदना कर रहा हूं, इसी लिए ही मैने आपके चरणकमलोंका स्पर्श क्रिया है, अतः हे भगवन् ! मेरे अपराधको क्षमा कीजिये, आप क्षमा करने योग्य हैं, मैं फिर ऐसा अपराध नहीं करूंगा | इस प्रकारके शीतल वचनों करके शेलक ऋषिनीको शान्त किया ॥ तात्पर्य यह है कि नित्यम् प्रति प्रतिक्रमण करनेकी प्रथा न होने पर भी दो प्रतिक्रमण किए जाते थे । जब प्रतिक्रमण अवश्य करनेकी प्रथा है तत्र तो चातुर्मासी और सम्वत्सरीको दो प्रतिक्रमण अवश्य ही करने सूत्रों से सिद्ध है तथा यही आम्नाय श्री पूज्य* अमरसिंहजी महाराजकी है, और पंचम आवश्यक अर्थात् पक्षीको १२ लोगस्स उज्जोय गरेका ध्यान, चातुर्मासीको २०, और सम्वत्सरीको ४० लोगस्सका ध्यान करना, क्योकि यह कथन पंत्र व्यवहारानुकूल है और चातुर्मासी वा सम्वत्सरीको प्रथम देवसी प्रतिक्रमण फिर चातुर्मासी वा सम्वत्सरी प्रतिक्रमण करने चाहियें | इस लिए हीं मैने श्रीश्रीश्री १००८ परमपूज्य आचार्यवर्य श्री सोहनलालजी महाराजकी आज्ञासे तथा श्रीश्रीश्री १००८ गणावच्छेदक वा स्थविर पदविभूषित श्री स्वामी गणपतिरायजी महाराजकी आज्ञासे पड़ावश्यकका हिंदी भाषायुक्त अर्थ लिवा है । आशा है भव्य जन विधिपूर्वक आवउयक सूत्रके पठनपाठनसे अपने अमूल्य मानुष जन्मको सफल करेंगे ॥ उपाध्याय जैन मुनि आत्माराम ॥ * श्री पूज्य अमरसिंहजी महाराजका नाम वर्तमानकालने विख्यात होजैसे ही पुनः २ लिखा गया है |
SR No.010524
Book TitleAgam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherLala Munshiram Jiledar
Publication Year1915
Total Pages101
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_aavashyak
File Size4 MB
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