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________________ पिका-नियुक्ति टोका अ.६ सु.८ जीवाधिकरणभेदनिरूपणम् : तवानियुक्ति:-पूर्वसूत्रे साम्पराविककर्मनन्वहेतुभूतानन्त्र विशेष पनकतया वीव्रभाव मन्दभावादयो बीविशेषाधिकरणविशेषाय प्रतिपादिशा माधिकरणशब्देन जीरूपाधिकरणम् अणीवरूपाधिकरणञ्च गृह्यते, तत्र अधर्म: वायद जीवाऽधिकरणभेदं प्रतिपादयितुमाह-'पढमं संरंगाइविसेसेहि हिरण विह' इति ! मथमन्तायद् नीवाधिकरणं संरम्भादिविशेपैः संरम्भ, समा स्माऽऽरभ्भमनोगादियोग काकारितामा क्रोधानमावालोगरूप काय विशेष स्त्रयोदशविध भवति । तत्र गमवावद संक्षेपतो. जीव रूप मानाधिकरण विविधं भवति संरम्भसमारम्भाऽऽरम्भ भेदात् । तत्र माणातिपानादि सङ्कल्पासंज्वलन के भेद से क्रोध आदि के भेदों की गणना की जाय तो बहुत से अवान्तर भेद होते हैं । ८॥ . । तत्यार्थनियुक्ति-पूर्वहन में साम्पराविक शर्मबन्ध के कारणभूत भास्त्रव में विशेषता उत्पन्न करने वाले तीव्र भाय, मन्दभाव वीर्य: विशेष और अधिकरण का प्रतिपादन किया गया। यहां अधिकरण शब्द से जीवाधिकरण और अजीबाधिकरण का ग्रहण होता है। इन में से यहां जीवाधिकरण के भेदों का प्रतिपादन करने के लिए कहते हैं प्रथम अर्थात् जीवाधिकरण संरंभ आदि के भेद थे लेरह प्रकार का हैं, यथा-संरम्भ, समारम्भ, आरम्भ, मनोयोग, वचनयोग, काययोग कृत (स्वयं करना) कारित (दूसरे से रवाना) और अनुमत (दूसरे. के किये का अनुमोदन करना) क्रोध मान, माया और लोभ। .. , संक्षेप से जीवाधिकरण के तीन भेद है संरस्म, समारम्भ और સંજવલર આદિના ભેદથી ક્રોધ આદિના ભેદની ગણતરી કરવામાં આવે તે ઘણાબધાં અવાક્તર ભેદે થાય છે ૮ . * તસ્વાર્થનિયંતિ–પૂર્વસૂત્રમાં સામ્પરાયિક કર્મબંધના કારણભૂત સવમાં વિશેષતા ઉત્પન કરવાવાળા તીવ્રભાવ, મદભાવ, વીર્યવિશેષ તથા અધિકરણનું પ્રતિપાદન કરવામાં આવ્યું અત્રે અધિકરણ શબ્દથી જીવાધિકરણ અને અછવાધિકરણ સમજવાના છે. આમાંથી અહીં જીવાધિકરણના ભેદનું પ્રતિપાદન કરવા માટે કહીએ છીએ પ્રથમ અર્થાત જીવાધિકરણ, સંરંભ આદિના ભેદથી તેર પ્રકારના છે. म :-स२, समारभ, मास, मनाया, क्यनयान, ययो, zi (જાતે કરવું) કારિત (બીજા પાસે કરાવવું) તથા અનુમત (બીજા દ્વારા કરાતોને मनुभावन मा५), अध, भान, माया भने बाल. * સંક્ષેપથી જીવાધિકરણના ત્રણ ભેદ છે-સંરંભ સમારંભ, અને આરંભ.
SR No.010523
Book TitleTattvartha Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages895
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size73 MB
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