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________________ ४५३ दीपिका-नियुक्ति टीका अ.७ रु. ६१ वाह्यतपसोभेदनिरूपणम् मूलम्-बाहिरए तो छविहे, अणसणऊणोरियाभिक्खायरिया रसारिच्चाग-कायकिलेग-संलोणया भेयओ ॥६॥ छाया--'वाह्यन्तपः पइविधम्, अनशनाऽवमौदर्य-मिक्षाचार सपरित्याग - कायक्लेश-संलीनतामेदतः ॥६१॥ तत्वार्थदीपिका--पूर्वसूत्रे-संवरहेतुभूतिषसो द्वविध्य प्रतिपादितम्,वाह्याऽभ्यन्टरभेदात्, सम्प्रति तस्यैव तपसः प्रथमभेदभूतस्य बाह्य तास पड्भेदान् ररूपयितुमाह पाहिरए तवे छबिहे' इत्यादि । बाह्य बहिर्भवं तपः खलु पइविधं वर्तते,तद्यथा-अनशनाऽ मौदर्य-मिक्षाचर्या-रस परित्याग-कायक्लेश-संलीनताभेदतः। तत्राऽशनपान खाद्य स्वाधरूपचतुर्विधाहारपरित्यागोऽनशन मुच्यते, तत्रकर्मों का आस्त्रब रुक जाता है। इस प्रकार तप संदर और निर्जरा दोनों का कारण है ॥६० ॥ 'बाहिरए तवे छब्धिहे' इत्यादि सूत्रार्थ-बाह्य तप छह प्रकार काहै-(१) अनशन (२) अवमौदर्य (३) भिक्षाचर्या (४) रसपरित्याग (५) कायक्लेश और (६) प्रतिसंलीनता ।६०॥ तत्वार्थदीपिका- पूर्व सूत्र में संघर के कारणभूत लप के दो भेद कहे हैं-बाह्य और आश्यन्तर । अब पाय लप के भेदों का निरूपणकरते हैं। बाह्य तप छह प्रकार का है-(१) अनशन (२) अवमोदय (३) भिक्षाचर्या (४) रखपरित्याग (५) कायक्लेश और (६) संलीनता । इनमें से अशन, पान, खादिम और स्वादिल रूप चार प्रकार के आहार का परित्याग करना अनशन कहलाता है। उपवास, वेला, तेला, चौला થાય છે અને નવા કર્મોનો આસ્રવ રેકાઈ જાય છેઆ રીતે તપ, સંવર અને નિર્જરા બંનેનું કારણ છે. ૬૦ . 'बाहिरए तवे छबहे' छत्यादि सूत्राय- त५ ७ ५४२ -(१) अनशन (२) ममोहय (3) मिक्षायर्या (४) २सपरित्याग (५) यश गने (६) प्रति तीनता. તન્નાથદીપિકા–પૂર્વ સૂત્રમાં સંવરના કારણભૂત તપના બે ભેદ કહેવામાં આવ્યા છે બાહ્ય તેમજ આભ્યન્તર હવે બાહ્ય તપના ભેદનું નિરૂપણ उरी छीमे___ा त५ ७ ५४२ -(१) अनशन (२) समय (3) मिक्षा. या (४) २सपरित्याग (५) यश भने (6) प्रतिससीनता सामाथी અશન, પાન, ખાદ્ય અને સ્વ ઘ રૂપ ચાર પ્રકારના આહારને પરિત્યાગ
SR No.010523
Book TitleTattvartha Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages895
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size73 MB
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