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________________ L ५६ को 12 vain k aran यविशेषः सातिशयो भवति तीवस्तीनतर :स्तीवतमश्च तद्विशेषाच्च बन्धः विशेषो भवति, कारणभेदश्च कार्यभेदानुविधायी भवति, कार्यभेदश्च वारणादा मनगमयति; तस्मात् परिणाम विशेष मात्रापेक्षयाऽऽमा कर्मवन्धको भत्रति शीप भावविपरीतो मन्दभात्री भवति, तस्माच्चाऽऽत्मपरिणतिविशेषाद् अनुस्खा मन्दभावात् कर्मबन्धभेदो भवति । स्वल्प एवान्तरः परिणामो यदा मन्दो भवति तदा कर्मवन्धोऽपि स्वल्पपरिणामापेक्षत्वा मन्द एवोपजायते-न तु कदाचित स्पान्तरपरिणामलक्षण मन्दभाबाद् अनुस्कटात्तीवभावतुल्या कर्मयधा सम्भवति सचाऽपि तीब्रो मात्र आत्मपरिणतिविशेष कदाचिदधिमात्रः कदाचिदधिमात्रमा कदाचिदधिमात्र मृदुः कदाचिन्मध्याधिमात्रा कदाचिन्मध्यमः, 'कदाचिन्मध्यमृदा अधिक तीव्र होता है तो तीव्रतर कहलाता है और जब भत्यधिक तीन होता है तो तीव्रतम कहलाता है। भाव में जितनी तीव्रता होती है, बंध में भी उतनी ही तीव्रता होती हैं और उसके अनुसार उसके फल में भी उतनी ही तीव्रता आ जाती है। कारणों के भेद होने से कार्य में भी भेद होता है और कार्य में भेद देखकर कारणों में भेद का अनुमान किया जाता है। इस नियम के अनुसार आत्मा की परिणति के भेद से बन्ध में भेद होना स्वाभाविक है और वन्ध के भेद से आत्माकी परिणति की विषमता का मान किया जा सकता है . : . . . तीव्रभाव से जो विपरीत हो वह मन्दभाव कहलाता है। मन्त्रा जो कर्मयध होता है वह स्वल्प होता है, उत्कट नहीं होता.जसमें तीन भाव से होने वाले बन्ध के समान उत्कंटता नहीं होती। મિત્ર છે તે તીવ્રતરક્કહેવાય છે અને જ્યારે અહિં અધિકહતી હોય છે તે તીવ્રતમ કહેવાય છે ભાવમાં જેટલી તીવ્રતા હોય છે, તેટલી ભ્રમમાં પણ તીવ્રતા કોંય છે અને તદનુસાર તેના ફળમાં પણ તેટલી જ ઉંત્રિત High य C ontin . fuc cit કારમાં ભેદ હોવાથી કાર્યમાં પણ ભેદ થાય છે, અનેં કભદ્માવત જોઈને. કારમાં ભેદનું અનુમાન કરવામાં આવે છે. આ નિયમ અનુસાર આત્માની પરિણતિના ભેદથી બન્ધમાં ભેદ થવો સ્વાભાવિક છે અને ભાવિ बीमाभानी परियतिनी; qषमतानु: अनुभात,NTAs4 छ: US તીવ્રભાવથી જે વિપરીત હોય તે મદભાવ કહેવાયા . મમભાવ કેમ બન્યા હોય છે તે સવ" કહે છે, ઉત્કૃષ્ટ હેતેથી તેમાં ખાતીબ્રિભાવથી RiRe irur: आ माता सती थी 12519
SR No.010523
Book TitleTattvartha Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages895
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size73 MB
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