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________________ २४ दर्शनमनीय अन्य कर्म के उदय से श्रमण में दर्शन और अलाभपरीपदकी उत्पत्तिका निरूपण सू. १३२३२ - २३४ २५ चारित्रमोहनीयकर्म के निमित्त से होनेवाले सात परिषदोंका कथन सू० १४ '२६ वेदनीयकर्म के उदय से होने वाले ग्यारहपरीषदों का कथन सू० १५ २७ एक जीव को एक ही काळ मे होने वाले 1 परीषहों का कथन सू० १६ २४२-२४७ २२-२८ हिंसादि से निवृत्ति आदि व्रतों का निरूपण सू० १७-२४ २४८-२५० २५१-२५७ २९ हिंसा के स्वरूप निरूपण सू० २५ ०/३० मृषावाद का निरूपण ० २६ ६०. ३१ स्तेय का स्वरूप निरूपण ० २७ ३२ मैथुन का निरूपण सू० २८ ३३ परिग्रह का निरूपण ० २९ t ३४ पांच अणुव्रत का निरूपण सू० ३०- ३७ ५०३५ मारणांतिक संलेखना का निरूपण सू० ३८ ア ३६ सम्यग्दृष्टि के पांच अतिचार का निरूपण सू० ४०० २३५-२३८ २३९-२४२ ३७ अणुव्रत एवं दिग्वत के पांच अविचारका निरूपण सू० ४१-४२३१४-३२३ १३८ तीसरे अणुव्रत के स्तेनाहृतादि पांच ५ अविचारों का निरूपण सू० ४३ ३९ चोथे अणुव्रत के पांच अविचार का निरूपण सू० ४४ १८ - ४० पांचवें अणुव्रत के पांच अविचार का निरूपण सू० ४५ '४१ दिग्विरत्यादि सात शिक्षावत के पांच पांच अविचारों का निरूपण ० ४६ ४६ पोपधीपवास के पांच अतिचारों ना निरूपण सू० ५१ ४७ बारहवें व्रत के पाँच अतिचार का निरूपण सू० ५२ S २५७-२६५ २६५-२७१ २७१-२७३ २७३-२८५ २८५-२८७ २८८-२९५ २९६-३१३ ३२४-३३१ ३२३-३३७ ३३८-३४५ ३४६-३५१ ४२ उपभोग परिभोग परिमाणत्रत के अविचारका निरूपण ०४७३५२-३५५ ४३ अनर्थदण्ड विरमणव्रत के अविचार का निरूपण सू० ४८ ४४ सामयिकव्रत के पांच अतिचारों का निरूपण सू० ४९ ४५ देशावकाशिकवत के पांच अतिचारों का निरूपण सू० ५० ३५६-३६४ ३६४-३७० ३७० -३७७ ३७७-३८२ ३८३-३८९
SR No.010523
Book TitleTattvartha Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages895
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size73 MB
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