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________________ दीपिका - नियुक्ति टीका अ. ६ सू. ५ साम्परायिककर्मास्रवभेदनिरूपणम् ३५ सैव प्रत्ययो यस्याः सा - नवकाङ्क्षा प्रत्ययिकी - २० प्रेम प्रत्ययिकी, मेमोरागः मायालोभरूपः स प्रत्ययः कारणं यस्याः सा - प्रेमप्रत्ययिकी - २१ द्वेष प्रत्ययिकी, द्वेषः - क्रोधमानरूपः स मत्ययः कारणं यस्याः सा द्वेष प्रत्ययिकी २२ प्रायोगिकी, मनो वाक्कायप्रयोगपूर्वकं जायमाना क्रिया-प्रायोगिकी - २३, सामुदानिकी, यथा-मनोवाक्कायप्रयोगगृहीतं कर्म समुदायावस्थं सत् स्थित्यनुभाव प्रदेशरूपतया व्यवस्थाप्यते सा - सामुदानिकी - क्रिया- २४ ऐर्यापथिकी, इरणम्ईर्यागमनं तद्विशिष्टस्तत्प्रधानो वा पन्थाः ईर्यापथस्तत्र भवा - ऐर्यापथिकी- २५ व्युत्पत्तिमात्रमिदं प्रदर्शितम् । प्रवृत्तिनिमित्तं तु यत् - उपशान्तमोहस्य, क्षीणमोहस्य सयोगिकेवलिनश्च सातावेदनीय कर्मतयाऽजीवस्य पुग्दलराशेर्भवन, सालापरवाही करने से होनेवाली क्रिया । (२१) प्रेमप्रत्ययिकी - माया और लोभ के कारण होनेवाली क्रिया । (२२) द्वेषप्रत्ययिकी - क्रोध या मान से होनेवाली क्रिया । (२३) प्रायोगिकी - मन वचन काय के व्यापार पूर्वक होनेवाली क्रिया (२४) सामुदानिकी - मन वचन और कायके द्वारा गृहीत कर्म जिस क्रिया के द्वारा समुदाय अवस्था में होते हुए स्थिति, अनुभाग, और प्रदेशरूप में परिणित किये जाएं। (२५) ऐर्यापथिकी- चलने-फिरने से लगने वाली क्रिया । यह अर्थ सिर्फ व्युत्पत्तिनिमित्त से किया गया है, इसका प्रवृत्तिनिमित्तक आशय यह है - उपशान्नमोह, क्षीणमोह और सयोग केवली को योग के निमित्त से सातावेदनीय कर्म का जिससे बन्ध होता है, वह ऐर्यापथिकी 'क्रिया है । इन उपशान्तमोह आदि में प्रमाद और कषाय का उदय રાખવાથી ચવાવાળી ક્રિયા, (२१) प्रेमप्रत्ययिडी - भाया भने बोलना र थनारी डिया. (२२) द्वेषप्रत्ययिडी - डोध, भने भानथी थनारी डिया (२३) प्रयोगिड्डी - मन, वचन, अया द्वारा गृहीत उभे के डियानी દ્વારા સમુદાય અવસ્થામાં થતાં થકા સ્થિતિ, અનુભાગ અને પ્રદેશ રૂપમાં પરિણત કરવામાં આવે. (૨૫) અય્યપથિકી-હાલવા ચાલવાથી લાગવાવાળી ક્રિયા, આ અમાત્ર વ્યુત્પત્તિ નિમિત્તથી કરવામાં આવ્યા છે. આને પ્રવૃત્તિ નિમિત્તક આશય આ પ્રમાણે છે-ઉપશાન્ત માહ, ક્ષીણમેહ અને સર્ચાળ કેવળીના ચેાગના નિમિત્તથી સાતાવેદનીય કમનેા જેનાથી અન્ય થાય છે તે અર્થાપિથકી ક્રિયા છે. આ ઉપશાન્ત મેહ આદિમાં પ્રમાદ અને કષાયને ઉદય થતા નથી,
SR No.010523
Book TitleTattvartha Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages895
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size73 MB
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