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________________ दीपिका-नियुक्ति टीका अ. ७ - 17 - छाया हिंसादिभ्यो विरति व्रतम् | १८/B-AGN . १८-२४ विस्त्यदिव्रतनिरूपणम् -1 x N - मूल्य - तं लमओ देसओ मह अ " F छाया - तत् सर्वतो देशती, भद - च । १९ -धूप-सबओ अणगाररस, ते पंच दलओ, अगर ते है औ बारस ||२०|| 1971 छाया - सर्वतोऽनगारस्य, तानि पञ्च, देशवोऽवारिणः तिघरा । २० मूलम् - ताई बारस, अणुव्वय गुणव्वय- सिक्खायय क्षेत्रा छाया— तानि द्वादश पनि 'अणुत्र गुणव्रत- शिक्षा सलग १ 'हिंसाई हितो चिरई ॥१ ARE YOU BF 2073/2 - हिंसादिपापों से निवृतः ॥ १८ ॥ 'तं सन्देओ यहं अणू' ॥१९॥ सूर्य-चिरति दो प्रकार की सर्व पिरति । सर्वविरति को ही कहते हैं, देश विरति को अनाहते है है । 'लब्बभो अणगारस्त्र, ते पंच, देखभी आगरिस्ट) से चैक h सूत्रार्थ--सर्वविरति अनगार-साधु के होते है प देशविरति रूप ब्रन गृहस्थ श्रावक के होते हैं। वे बाहेर 'लाई वा अय, गुणव्यय-सिक्खाय ॥२१॥ समार्थ--अणुवन, गुणन और शिक्षायों के मे से के व्रत बारह प्रकार का है ॥२॥ 3 १७ इसे " मूलमू- हिंलाई हितो विरई वय १८ -E સૂત્રીય હિંસા આદિ પાપાથી નિવૃત્ત થવુ વ્રત કહેવાય છે 'आई ,,, मूलम् - तं सङ्घबओ देसओ सह अणूय S 18. सुत्रार्थी - विश्ति से अधारनी है-सृर्व विरति भने हेरा विरति सर्व विरतिने મહાવ્રત કહે છે, દેશવિરતિને અણુવ્રત કહે છે. ૧૯ વરી હોય '''',,': मूलसू+, खबाओ, अणगाररस ते पंच, देखओ आगुरिस्ट, वे वारस ॥२०॥ સૂત્રા-સવિરતિ અણુગાર સાધુને હાય છે તે પાંચ છે દેશવિરતિ षि व्रत ग्रहस्था श्रवने होय. छे. ते बार होय २० # STUD मूलम् - ताई बारस, अणुव्ववय, गुणव्व- सिखावयभेया ॥२ सूत्रार्थ-भभुवंता, गुरुताने शिक्षाप्रत नागरथी श्रीवामा व्रत मार પ્રકારના છે. ા૨૧૫ त० ३२
SR No.010523
Book TitleTattvartha Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages895
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size73 MB
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