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________________ MEROrce २४० तत्त्वार्यसूत्रे सप्तचेत्ये कादश परीषहाः प्ररूपिताः सम्पति-वेदनीयकर्मोदयेन प्रज्ञाऽज्ञाना. घेकादशपरीपहा अवशिष्टाः तानेकादश क्षुत्पिपासादीन् परीपहान् प्ररूपयितु. "माह-वेयणिज्जे सेसा एक्कारसपरीमहा-' इति, वेदनीये-वेदनीयकर्मोदये सति शेषा एकादश परीपहाः भवन्ति, तद्यथा-आनुपूर्व्या-क्षुत्पिपासा-शीतोष्ण दंशमशकाखा: पञ्चपरीपहाः, चर्या-शय्या-वध-रोग-तृणस्पर्शमलाख्याः पट्, इत्येवं रीत्या-एकादशपरीषहा भवन्ति । एवश्व-पूर्वोक्तेभ्यः प्रऽज्ञाऽज्ञानदर्शना. ऽलाभाऽचेलाऽरति स्त्रीनिषधाऽऽक्रोश-याचना-सत्कार पुरस्कारेभ्य एकादश परीषहेकोऽवशिष्टाः क्षुत्पिपासा-शीतोष्ण-दंशमशक-चर्या-शय्या-वध रोग तत्वार्थनियुक्ति-पहले ज्ञानावरणीय, दर्शनमोहनीय, चारित्रमोहनीय और अन्तराय कर्म के निमित्त ले होने वाले प्रज्ञा, अज्ञान, दर्शन, अलाभ, अचेल, अरति आदि ग्यारह परीपह कहे गए हैं, अब घेदनीय कर्म के उदय से होने वाले अवशिष्ट क्षुधा पिपाप्ता आदि. परीषहों की प्ररूपणा करते हैं वेदनीय कर्म का उदय होने पर शेष ग्यारह परीपह होते हैं। वे अनुक्रम से इस प्रकार है-क्षुधा, पिपाला, शीत, उष्ण, दंशमशक, ये -पांच तथा चर्या, शय्या, बंध, रोग, तृणस्पर्श और मल, ये छह, इस प्रकार ग्यारह परीषह होते है । इस प्रकार पूषोंक्त प्रज्ञा, अज्ञान, दर्शन, अलाभ, अचेल, अरति, स्त्री, निषद्या, आक्रोश, याचना और सत्कार पुरस्कार, इन ग्यारह परीषहों से शेष बचे हुए क्षुधा, पिपासा, शीत, उष्ण, दंशमशक, चर्या, शय्या, वध, रोग, तृणस्पर्श तत्वा नियुति-पडेan शाना१२९५, शनिमानीय, यात्रिमा . નીય અને અન્તરાય કર્મના નિમિત્તથી થનારા પ્રજ્ઞા, અજ્ઞાન, દર્શન અલાભ,.. અચેલ, અરતિ આદિ અગીયાર પરીષહેનું વિવેચન કરવામાં આવ્યું છે હવે વેદનીય કર્મના ઉદયથી થનારા અવશિષ્ટ ક્ષુધા પિપ સા આદિ પરીષહાની પ્રરૂપણ કરીએ છીએ વેદનીય કર્મને ઉદય થવાથી બાકીના અગીયાર પરીષહ થાય છે તે 41 प्रभारी है-मनुभथा क्षुधा, विपासा, शीत, B, शमश से यांय, તથા ચર્યા, શય્યા, વધ, રોગ, તૃણસ્પર્શ અને મલ એ છ–આ પ્રમાણે અગીયાર પરીષહ થાય છેઆ રીતે પૂર્વોકત પ્રજ્ઞા, અજ્ઞન, દર્શન અલાભ, અચેલ, અરતિ, સ્ત્રી, નિષદ, આક્રેશ, યાચના અને સત્કારપુરરકાર આ मशीया२ पश५माथी माही २७ गयेला-क्षुधा, पिपासा, शीत, Sury,
SR No.010523
Book TitleTattvartha Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages895
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size73 MB
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