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________________ [ ४२ ] षद् द्रव्य निरूपण का अन्त होता है, समस्त दुःखों से मुक्ति मिलती है । समस्त संयमी इसकी श्राराधना करते हैं । 1 1 संवर के प्रधान दो भेद हैं - भाव-संवर तथा द्रव्यसंवर । कर्म-बन्धन के कारण भूत क्रियाओं का त्याग करना भाव-संवर है और भाव-संवर से कर्मों का रुक जाना द्रव्य-संवर है । आास्त्रव के मुख्य कारण मिध्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय और भोग हैं । इन कारणों का जिन-जिन गुणस्थानों में निरोध होता है, उस गुणस्थान में उतना ही संवर होता जाता है । यथा-मिथ्यात्व अवस्था का नाश करने के पश्चात् साश्वादन, मिश्र आदि गुणस्थानों में मिध्यात्व का संवर हो जाता है । इसी प्रकार देशतः पांचवें गुणस्थान में और पूर्णत: छठे गुणस्थान में विरति-अवस्था प्राप्त होने पर अविरति का संवर हो जाता है । सातवें गुणस्थान में श्रप्रमत्त दशा का श्राविर्भाव होते से वहां प्रमाद का संवर होता है, चौदहवें गुणस्थान में निष्कषाय अवस्था प्राप्त होने पर कषाय का संवर हो जाता है और तेरहवें प्रयोगी अवस्था प्राप्त होने पर योग का संचर हो जाता है । इन कारणों के अभाव होने पर किस-किस गुणस्थान में कर्मों की किन-किन प्रकृतियों का श्रास्रव रुकता है यह विस्तृत विचार विस्तार भय से यहां नहीं किया गया है । संवर तत्व के सत्तावन भेद हैं- पांच समिति, तीन गुप्ति, वाईस परीपद - जय, दस धर्म, चारह भावना और पांच प्रकार का चारित्र । चतना पूर्वक प्रवृत्ति करने को समिति कहते हैं । समिति के पांच भेद इस प्रकार हैं । (१) ईर्ष्या समिति - अर्थात् यत्ना पूर्वक, साढ़े तीन हाथ आगे की पृथ्वी देखते हुए, कारण- विशेष उपस्थित होने पर चलना । (२) भाषा समिति - हित, मित और प्रिय भाषा बोलना, निरवद्य भाषा का ही प्रयोग करना । (३) एपणा समिति - वेदना श्रादि कारण उपस्थित होने पर, शास्त्रोक्त विधि से निर्दोष श्राहार- पानी लेना । (४) श्रादाननिक्षेपण समिति - संयम के उपकरण यतना पूर्वक रखना और यतना पूर्वक उठाना । (५) प्रतिष्ठापनिका समिति - जीव रहित भूमि में यतना से मल-मूत्र श्रादि त्यागना । इस प्रकार यतना पूर्वक प्रवृत्ति करने से श्रसंयम के कारण भूत परिणामों का प्रभाव होता है और संयम - परिणाम के प्रभाव से, असंयमजन्य श्रस्रव का भी प्रभाव होता है और आलव का अभाव ही संवर है । } मन, वचन, और काय की स्वेच्छापूर्ण प्रवृत्ति का रूकना गुप्ति कहलाता है विषय-सुख के लिए मन आदि की प्रवृत्ति रुकने से संक्लेश नहीं होता और संक्लेश
SR No.010520
Book TitleNirgrantha Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year
Total Pages787
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size51 MB
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