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________________ [ ७२० ] # बम्बई समाचार' ता० जैनो तेम जैनंतरो माटे 'निर्ग्रन्थ प्रवचन पर सम्मतियां हुआ १. ( .६२ ) २२ जुलाई १६३३ में लिखता है किपण एक सरखु उपयोगी छे । ( ६३ ) श्री " " जैन पथ प्रर्दशक " आगरा ता० ६ सितम्बर ३३ में लिखता है कि प्रत्येक जैनी को पढ़कर के मनन करना चाहिए। प्रत्येक पुस्तकालय इस का होना जरूरी है ( ६४ ) 'जैन प्रकाश' बम्बई वर्ष २० अंक ४३ ता० १० सेप्टेम्वर १६३३ में लिखता है कि मुनिश्री ने आगम साहित्य का नवनीत निकाल कर गीता के समान १८ अध्यायों में विभक्त करके पाठकों के सामने रक्खा है | बहुत उपयोगी संग्रह हैं । ( ६५ ) 'जैन ज्योति' अहमदाबाद वर्ष ३ क ३ में लिखता है - या चटणी नित्य पाठ मांटे खूब उपयोगी छे 1 मां भाग्येज शंका छ । ( ६६ ) करांची (सिंघ ) से प्रकाशित सन् १६३४ के २२ वीं दिसम्बर का 'पारसी संसार और लोकमत' लिखता है कि हिन्दी भाषा जाननेवाली प्रजा के लिए यह पुस्तक अत्यन्त उपयोगी हैं और प्रत्येक हिन्दी भाषी को अपने घर में मनन करने के लिए रखने योग्य हैं। ( ६७ ) सैलाना से प्रकाशित सन् १९३४ के जुलाई के 'जीवन ज्योति' ने लिखा है कि निर्ग्रन्थ प्रवचन आध्यात्मिक ज्ञान का अमूल्य ग्रन्थ हैं । इन उपदेशों से क्या जैन और क्या जैन सभी समान रूप से लाभ उठा सकते हैं ।
SR No.010520
Book TitleNirgrantha Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year
Total Pages787
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size51 MB
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