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________________ Homen मोक्ष स्वरुप सात प्रकृतियों के उपशम से उपशमलम्यक्त्व और क्षय से क्षायिक सम्यक्त्व होता है । मगर अप्रत्याख्यानावरण कषाय का उदय होने से जब जीव एक देश संयम की भी श्राराधना नहीं कर पाता, उस समय की जीव की अवस्था को अविरत सम्यक दृष्टि गुणस्थान कहते हैं । सम्यक दृष्टि जीव जिन प्रवचन पर श्रद्धान करता है । कभी झूल ले उसकी श्रद्धा असत् पदार्थ विषयक हो तो भी वह सम्यकदृष्टि ही रहता है। हां, शास्त्रप्रमाण उपस्थित कर देने पर भी अगर वह अपनी श्रद्धा का संशोधन न करे तो फिर मिथ्यादृष्टि हो जाता है। सम्यक्त्व के प्रभाव से जीव नरक गति, तियञ्चगति आदि से बच जाता है और अर्द्धपुद्गल परावर्तन काल में मुक्ति प्राप्त कर लेता है। [५] देशविरति गुसस्थान-जीव सम्यग्दृष्टि प्राप्त कर लेने के पश्चात जब चारित्र मोहनीय कर्म की दूसरी प्रकृति अप्रत्याख्यानावरण कर्म का भी क्षय या उपशम कर लेता है, तब उसे देशसंयम की प्राप्ति होती है। जीव की इस अवस्था को देशविरति गुणस्थान कहते हैं इस गुणस्थान वाला जीव यथाशक्ति तप और. प्रत्याख्यान करता है अणुव्रतों का पालन करता है। कहा भी है जो तसबहादु विरदो, अविरदो तह य थावर नहाओ। एग समयाम्म जीवो, विरदा विरदो जिणेगमई ॥ अर्थात्-जो जीव एक ही लाथ नल जीवों की हिंसा से विरत और स्थावर जीवों की हिंसा से अविरत होता है, जिन धर्म पर जिसकी अटल श्रद्धा होती है वह विरताविरंत या देशविरत कहलाता है । उस जीच की वह अवस्था देशविरति गुण. स्थान कहलाती है। देशविरति गुणस्थान चाला जीव कम से कम तीन भवमें और अधिक सें अधिक पन्द्रह भवों में मुक्ति प्राप्त करलेता है। . [६] प्रमत्तसंयत गुणस्थान-जब आत्मा विकास की ओर अधिक प्रगति करके प्रत्याख्यानावरण कषाय के क्रोध, मान माया और लोभ का भी क्षय या उपशम करके पूर्ण संयम को धारण करता है और अहिंसा आदि महावतों का, पांच समि-- तियों का, तीन गुप्तियों का पालन करता है, अर्थात् मुनि-दशा अंगीकार करलेता है किन्तु प्रमाद का अस्तित्व रहता है, उस समय की उसकी अवस्था प्रमतसंयतगुणस्थान कहलाती है। कहा भी है। संजलगणो कसायागुदयादो संजमो भवे जन्हा । . मलजणणपमादो विय, तम्हा तु पमत्तविरदो सो॥ वत्तावत्तपमादे जो वसइ, पमत्तसंजदो होर । सयलगुणसील कलिश्रो, मद्दव्बई चित्तलाचरणो॥ ' अर्थात्-संज्जलन कपाय और नोकषाय का ही उद्य रह जाने से जहां सकल .
SR No.010520
Book TitleNirgrantha Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year
Total Pages787
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size51 MB
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